अलग राज्य बनने का लाभ से अभी भी जनमानस महरूम

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9 नवंबर 2000 की वो शाम किस उत्तराखंडी को याद नही। देहरादून के परेड ग्राउंड और पवेलियन में हज़ारों उम्मीदों से भरे चेहरे मुस्कुरा रहे थे। अधिवक्ता अमित तोमर के अनुसार गढ़वाली-कुमाऊनी-गोर्खाली-जौनसारी पारंपरिक वेशभूषा में बहने मंगल गीतों पर थिरक रही थी। आँखों में आँसू लिए क्रांतिकारी ख़ुशी में झूम रहे थे मानो दो दशक के संघर्ष का फल मिल गया हो। उत्तराखंड के वीर बलिदानियों के परिजन गौरव से छाती चौड़ी कर आँखों में ख़ुशी, गौरव एवम् विजय के आँसू रोक नही पा रहे थे। यह जीत का जश्न था, यह शहादत का जश्न था, यह उत्तराँचल का जश्न था। उत्तरांचल बनाने का श्रेय लेने वाली तत्कालीन अटल सरकार ने उत्तरांचल बनते ही इस नए राज्य को गुलाम बनाने के अपने मंसूबे जाहिर कर दिए जब क्रान्तिकारियो को कोने में बैठाकर उत्तर प्रदेश के विधान परिषद् अध्यक्ष डॉ नित्यानंद स्वामी को उत्तरांचल का पहला मुख्यमंत्री बनाया। 11 माह का स्वामी राज उत्तराँचल में दिल्ली के लाला और दलालों के कदम ज़माने में सबसे सहायक सिद्ध हुआ। उत्तरांचल के टेंडर दिल्ली में निकलते और वही के लाला उन्हें भरते। उत्तराँचल की दलाली शुरू हो चुकी थी। अधिवक्ता अमित तोमर के अनुसार 11 माह में ही ऐसी लूट मची की स्वामी को हटाकर संघ के प्रमुख चेहरे भगत सिंह कोश्यारी को कमान सौंपी गयी। अगले चुनाव में मात्र 4 माह शेष थे। स्वामी के निराशाजनक 11 माह की कालिख धोने के लिए यह 4 माह बहुत कम साबित हुए और बेदाग़ छवि वाले दिग्गज कोश्यारी के नेत्रेत्व में 2002 में बीजेपी की करारी हार हुई। कोश्यारी जी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही की 4 माह के कार्यकाल में उनपर एक ऊँगली नही उठी। वो बेदाग़ आये और बेदाग़ चले गए।2002 में कांग्रेस का सितारा चमका और मीडिया के सामने हार मानने की गलती कर चुके हरीश रावत को गद्दी ना देकर कांग्रेस ने पुराने विद्रोही नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बना दिया। शुक्र के विशेष कृपाधारी तिवारी  के मुख्यमंत्री काल को जब इतिहासकार लिखेंगे तो उनकी तुलना जहांगीर की अय्याशियों से करेंगे। तिवारी काल अय्याशियों और लाल बत्ती बन्दर बाँट के लिए कुख्यात हुआ। तिवारी काल में सत्ता की अंधी लूट मची। हर अंजा-गंजा लाल बत्ती में था। सत्ता की हर कुख्यात महिला तिवारी के शयनकक्ष में थी।अधिवक्ता अमित तोमर के अनुसार  विलासता और लूट के वो 5 साल किसी तरह बीते।2007 में बीजेपी की फौजी निति को कामयाबी मिली और जनरल खंडूरी चुनाव जीत गए। 7 मार्च 2007 में शुरू हुआ ‘जनरल राज’ 26 जून 2009 को तब ख़त्म हुआ जब बीजेपी ने खंडूरी सरकार में लोकसभा की पाँचो सीटे कांग्रेस को देदी। वैसे यह 15 महीने भी ‘सारंगी लूट’ के लिए कुख्यात रहे। खंडूरी के इस प्रथम काल में भी अंधी लूट मची और उनके एवम् वरिष्ठ IAS अफ़सर प्रभात कुमार सारंगी के रिश्ते मीडिया में आ गए। जो काम तिवारी काल में एक गिफ्ट भेज होता था उस काम की कीमत खंडूरी सरकार में 10 करोड़ तक पहुँच गयी। बीजेपी हाई कमान (आडवाणी) को 2009 में नौ करोड़ रूपये तत्काल खंडूरी सरकार द्वारा दिए जाने की बात सर्वर्जनिक होने के बाद खंडूरी भी निबटा दिया गया क्योकि सारंगी की लूट के चर्चे अब आम हो चुके थे।अब बीजेपी ने अपने सेटिंग मास्टर रमेश पोखरियाल निशंक पर दांव खेला और पूर्व घोषित उघाई टारगेट के साथ 27 जून 2009 को निशंक को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी। निशंक को उत्तराखण्ड को किसी भी प्रकार लूटकर 500 करोड़ रूपये बीजेपी हाई कमान को देने थे। उत्तराखंड में दलाली चरम पर थी। उत्तराखंड में दलालों की खुली मंडी सजने लगी और उत्तराखंड बेचा जाने लगा। निशंक सरकार ने 56 पॉवर स्टेशन के लिए टेंडर निकाले तो बीजेपी का भ्रस्टाचार सड़कों पर दिखने लगा, बीजेपी से टिहरी के ज़िला पंचायत अध्यक्ष रतन सिंह घुंसोला ने जब निशंक पर 2 करोड़ घूस माँगने का आरोप लगाया तो 56 पॉवर स्टेशनों में हो रही दलाली सामने आई और दबाव में निशंक को 56 पॉवर स्टेशन का प्रोजेक्ट निरस्त करना पड़ा। संघ के सरस्वती शिशु मंदिर मे 2 हज़ार पगार पाने वाला रमेश कब अरबपति निशंक बन गया किसी को पता तक नही चला। वो चाहे ‘Citurgia Biochemicals’ जो की Sturdia Developers की मिलकियत थी की ज़मीन से जुड़ा मामला रहा हो जो उच्च न्यायालय नैनीताल में खूब उछला या फिर 2010 में केंद्र सरकार की CAG रिपोर्ट में (100 करोड़ रूपये का घोटाला) प्रकाश में आया हरिद्वार कुम्भ घोटाला रहा हो। रमेश बाबू ने बीजेपी के प्रति अपनी चाटुकारिता सिद्ध करने और उत्तराखंड को लूटने में कोई कसर नही छोड़ी। संघ का कथाकथित शिक्षक अरबों कमा चुका था जब बीजेपी शीर्ष नेत्रेत्व ने नया कार्ड खेला और 11 सितम्बर 2011 को पुनः उत्तराखंड की कमान जनरल को पकड़ा दी। जनरल का काम था अगले पांच माह में संघी लूट के निशान मिटाना। संघ के शीर्ष नेत्रेत्व ने बाकायदा खंडूरी राज पार्ट-2 की पटकथा लिखी और ‘सुराज – भ्रस्टाचार उन्मोलन एवम् जनसेवा’, के नारे के साथ उत्तराखंड के मासूम लोगों को मूर्ख बनाने का बड़ा विज्ञापन कैंपेन चलाया जो 13 मार्च  2012 को खंडूरी की शर्मनाक हार के साथ ख़त्म हो गया। खंडूरी अपनी सुरक्षित सीट कोटद्वार से बुरी तरह हारे। 13 मार्च 2012 को हाई कोर्ट के कुख्यात रिटायर्ड जज विजय बहुगुणा को ताज मिला। कांग्रेस हाई कमान को 500 करोड़ की भेंट चढ़ा मिला ताज बेशकीमती था क्योकि केंद्र में UPA सरकार थी। सत्ता का नंगा नाच इस देवभूमि पर ऐसा हुआ की महादेव केदार भी क्रोध में आ गए।। हज़ारो करोड़ रुपये की दलाली हुई। अब सोनिया मैडम विजय बाबू के पर कतरने ही वाली थी की सौभाग्यवश (उत्तराखंड का सबसे बड़ा दर्द इनका सौभाग्य था) बाबा केदार ने तीसरी आँख खोल दी और 2013 में आई त्रासदी से विजय बाबू ने अरबों रूपये ठिकाने लगा दिए। जब त्रासदी से उत्तराखंड के मासूम लोग भूख प्यास से तड़प रहे थे तो विजय बहुगुणा सरकार में जश्न का आलम था। अधिवक्ता अमित तोमर के अनुसार आरोप केवल 100 करोड़ लूट का ही लगा जबकि 1000 करोड़ से ऊपर की लूट हुई थी। अब मौका था हरीश रावत का। मंझा  हुआ खिलाड़ी जो अपने सभी पूर्वज लूटेरों से खेल खेलने में बेहतर था। पर अब उत्तराखंड में लूटने लायक कुछ नही बचा था। इस लिए हरीश बाबू ने शराब को चुना। आपको याद ही होगा जब आपने जुलाई 2015 में कांग्रेसी नेता चंद्र शेखर रावत और हरीश बाबू के निजी सचिव मोहम्मद शाहिद की रिकॉर्ड हुई कॉल सुनी होगी। 100 करोड़ रूपये खुले आम मांगता IAS शाहिद यह साफ़ बता रहा था की उत्तराखंड में लूट का आलम क्या है। हरीश बाबू का कार्यकाल कैसा है यह हम सब जानते है। बीजेपी पर 500 करोड़ रूपये खर्च कर 9 विधायक तोड़ने का इलज़ाम लगाने वाले हरीश बाबू ने खुद कितने करोड़ का ऑफर इन नेताओं को दिया वो पूरे उत्तराखंड ने ही नही पूरे भारत ने सुना। 
यह है शुरू के  16 साल की महा लूट। आज भी वही नेता बीजेपी में है और वही कांग्रेस में। उत्तराखंड की जनता भी वही है जो सब जानती है। 
जिस प्रदेश में भूखमरी का आलम हो, जिस प्रदेश में ढ़ाई लाख घर पलायन से खाली हो, जिस प्रदेश में बेरोज़गारी चरम पर हो, जिस प्रदेश में दलाली की कोई सीमा ही ना हो, उस प्रदेश में यदि यह डकैत चुनाव जीत जाते है तो यह उत्तराखंड की अस्मिता पर हमला होगा। हर युद्ध में एक तिहाई रक्त चढ़ाने वाले वीरों की मातृभूमि पर प्रश्नचिन्न होगा। 
उत्तराखंड के कातिल – भाग 2                केदार त्रासदी”आपदा के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने त्रासदी में मरे लोगों के शव ढुँढवाने का काम बन्द कराया।” हरीश रावत- मुख्यमंत्री उत्तराखंड
“यदि मैंने नर कंकालों को ढूँढने का काम बंद किया था तो तब हरीश रावत, जो उस समय केंद्र मंत्री थे, ने यह प्रश्न क्यों नही उठाया था।” विजय बहुगुणा, केदार त्रासदी के दौरान उत्तराखंड मुख्यमंत्री                             हिंदुस्तान -अक्टूबर 18, 2016
16-17 जून 2013 का भयानक मंज़र उत्तराखंड कभी नही भूल सकता। उत्तराखंड चार-धाम यात्रा अपने पूरे शबाब पर थी। हर वर्ष की भाँती लाखों पर्यटक देवभूमि में घूमने आये हुए थे। पर्यटन प्रदेश के गरीब लोग इन्ही 2 माह की कमाई से अपना पूरा साल गुजारते है। 16 जून 2013 के दिन लाखों लोग बाबा केदार के दिव्य दर्शन हेतु राज मार्ग पर थे, हज़ारों श्रद्धालु बाबा केदार धाम में दर्शन कर रहे थे कि तभी बाबा केदार ने अपना तीसरा नयन खोल दिया और कीड़े-मकोड़ो की भाँती इंसान पानी में था। ज़बरदस्त बारिश के चलते मंदाकनी ने रौद्र रूप धर लिया था मानो यही शिवाज्ञया रही हो। श्रद्धालुओं की चीख न्यू यॉर्क तक सुनी जा सकती थी। हर ओर मौत का तंडाव था। सिर्फ मौत ! 16 जून को शुरू हुई बारिश अगले 3 दिन चली और केदार की पवित्र घाटी मानो इन तीन दिनों तक मानव अतिक्रमण हटाने की ज़िद पाले हुई थी। जो रास्ते में आया वो नही रहा। हर ओर मातम। पूरा विश्व बिलख रहा था। शिव तांडव थम नही रहा था। बस्तियों सामूहिक कब्रे बन चुकि थी। सड़क पर मंदाकनी का कब्ज़ा था। और इंसान इतना बेबस कि उसकी जेब में रखी लक्ष्मी भी बेमोल थी। चारों ओर सिर्फ मौत !         जब पूरी दुनिया शोक में डूबी थी तो उत्तराखंड मुख्यमंत्री आवास में जश्न का आलम था, उत्तराखंड सचिवालय के बाबू ख़ुशी से पागल हुए जा रहे थे। यह वो समय था जब विजय बहुगुणा की विदाई लगभग तय थी और केंद्रीय मंत्री हरीश रावत तख्ता पलट की जुगत भिड़ा रहे थे। 500 करोड़ देकर मुख्यमंत्री बनने के आरोप अब विजय बहुगुणा की मुश्किलें बड़ा रहे थे क्योकि रिकवरी नही हुई थी। केदार त्रासदी मानो विजय बहुगुणा के लिए वरदान साबित हुई। उत्तराखंड पर पैसों की बरसात होने लगी। क्या देश क्या विदेश, दान की कोई सीमा नही रही।पैसा, अन्न, पानी, कम्बल एवम् टेंट जैसी बुनयादी वस्तुओ को लेकर लाखों ट्रक पूरे देश से उत्तराखंड की ओर रुख कर चुके थे। इस दौरान उत्तराखंड को लगभग 10000 करोड़ की आर्थिक सहायता मिली। अधिवक्ता अमित तोमर के अनुसार “दोनों हाथों में लड्डू और सर कढ़ाई में”, यही स्थिति विजय बहुगुणा सरकार की भी थी। फिर लूट का जो तांडव शुरू हुआ वो आज तक नही रुका। आपदा के नाम पर मिला पैसा नेताओ-बाबुओं ने मिलकर लूटा, खूब लूटा, जमकर लूटा। NDRF, SDRF,सेना, पुलिस के हज़ारों वीर जवान मौत के मुँह में फंसे लोगो को बचाने में लगे थे और सचिवालय में बैठे बाबू अपनी नई SUV गाडी के ब्रोशर बांच रहे थे। विडम्बना देखिये की हज़ारों की मौत पर भी यह परजीवी नेता-बाबू ऐसे खुश थे मानों लॉटरी लग गयी हो। लगी भी थी। अगले एक माह में केदार त्रासदी के आंकड़े स्पष्ठ हो चुके थे। सरकारी आंकड़ो के अनुसार कुल 3886 लोग या तो मर चुके थे या लापता हुए थे। अरबों रूपये खर्च कर राज्य सरकार केवल 644 शव ही ढून्ढ पायी थी। 3242 लोग आज भी लापता है। यह तो केवल सरकारी आंकड़े है। वास्तविकता में 10000 से भी अधिक लोग इस त्रासदी में मारे गए थे। सैंकडों गांव पूर्ण रूप से बर्बाद हो चुके थे। उत्तराखंड में जनता भूख-प्यास से तड़प रही थी और उत्तराखंड के नेता-बाबू ‘Black Dog’ गटक रहे थे।    आपदा के नाम पर राहत की नौटंकी आज तक चल रही है। आज भी अनेको नर कंकाल मिल रहे है। अधिकांश नरकंकालों के परीक्षण से पता चला की उनकी मौत का मुख्य कारण भूख-प्यास-ठंड थी, अधिकांश नरकंकाल समूह में बड़े पथरों की आढ़ में या वृक्षों के नीचे मिले है जिससे यह प्रतीत होता है कि मौत की आहट सुन यह दुर्भाग्यशाली लोग समूह में एकत्रित हो गए होंगे और लगभग दो सप्ताह भूक-प्यास की तड़प झेलने के बाद इन लोगों को दर्दनाक मौत नसीब हुई होगी, शव परीक्षण करने वाले डॉक्टरों ने माना कि यदि इन लोगों को दस दिन में भी खाना मिल गया होता तो यह जीवित होते।  31 मई 2015 को RTI के माध्यम से यह लूट सबके सामने आ गयी जब पता चला की आधिकारिक रूप से राज्य सरकार ने आपदा राहत पर कुल 6767 करोड़ रूपये खर्च किये थे जिसमे से 1509 करोड़ कहाँ खर्च हुए उसकी कोई झूठी पर्ची भी सरकार- बाबू नही दिखा सके। लूट का आलम क्या रहा होगा इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते है कि कुछ बाबुओं ने तो 272 रूपये प्रति लीटर दूध खरीदने का बिल लगाया, कुछ ने अपने पेट्रोल से चलने वाले स्कूटर की 6 लीटर की टंकी में एक साथ 30 लीटर तक डीजल भरवाने तक के बिल भुना डाले। राहत में लगी सैंकडों चौपहिया गाड़ियों की लिस्ट खंगाली गयी तो अधिकाँश नंबर दुपहिया वाहनों के निकले। लूट का मोटा पैसा खाने के बाद आखिकार विजय बहुगुणा सत्ता से बेदखल हो गए और उनकी बची-कुची खुरचन चाटने के लिए हरीश रावत भी जी तोड़ महनत में जुट गए। हरदा के हाथ ज्यादा नही लग पाया पर जो थोडा बहुत चिकनाई चाट सकते थे उन्होंने भी चाटी। अधिवक्ता अमित तोमर के अनुसार तत्काल में सर्वर्जनिक हुई RTI से पता चला की बाबा केदार के नाम पर गाना गवाने के लिए उत्तराखंड सरकार ने कैलाश खेर से 10 करोड़ में सौदा किया है। अब इससे आप स्वय  इन उत्तराखंड के कातिलों के खून सने चेहरे पहचान सकते है। हरीश रावत सरकार के विरुद्ध अपनी गोद में विजय बहुगुणा को बैठाये आज पूरी बीजेपी लामबंद है। मानो कमल की शरण में आते ही विजय बहुगुणा के सारे पाप धुल गए हो। सत्य जानकर भी कैसे मौन है उत्तराखंड की मृत जनता यह सोच मेरी आँखे नम हो जाती है। अब RTI लगानी भी बन्द कर चुका हूँ क्योकि वो भी पूरी तरह बेकार है। इतने बड़े घोटालों के बाद भी यह नर-पिशाच सत्ता का मुकुट पहने हुए है। मानवता मर चुकी है, शायद यही कलयुग है। मौत की मंडी के सौदागर इन नेता-बाबुओं से कैसे लडूं – विकल्पहीन हूँ। सब जानकार भी इनका कुछ नही बिगाड़ सकता। शर्म आती है अपनी नपुंसकता पर।हर हर शिव शम्भू , जय जय केदार

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