माकपा ने सरकार से मलिन बस्तियों के नियमितीकरण की मांग की

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देहरादून: चुनाव को आसानी से जीतने के लिए चाहे कांग्रेस हो या फिर भारतीय जनता पार्टी दोनो ही राजनैतिक दलों ने बस मलिन बस्तियों के नियमितकरण के मामले को सिर्फ कागजों तक ही सीमित रखा।यह बात उत्तरांचल प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान माकपा के सुरेन्द्र सिंह सजवाण ने पत्रकारो से कही। वार्ता क ेदौरान उन्होंने बताया कि राज्य के जन संगठनों एवं विपक्षी दलों ने एक प्रेस वार्ता द्वारा राज्य सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल उठाए। सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने के बाद व गरीबों के वोट प्राप्त करने के बाद दोनों दलों के नेताओं ने कभी मलिन बस्तियों के लोगों की समस्या को सुलझाना तो दूर की बात मलिन बस्तियों का दौरा करना भी गवारा न समझा जिसके कारण मलिन बस्तियों के लोग त्रस्त हैं।
हाल में खबर आ रही है कि राज्य में अवैध निर्माण हटाने के नाम पर कुछ मलिन बस्तियों को भी उजाडा जा रहा है। प्रेस वार्ता द्वारा वक्ताओं ने सरकार को याद दिलाया कि सत्ताधारी दल और राज्य सरकार ने जुलाई 2021 में राजधानी भर विज्ञापन लगा कर घोषित किया था कि उन्होंने अध्यादेश का नवीनीकरण कर राज्य में सारे मलिन बस्तियों को सुरक्षा दिया। वक्ताओं ने इस बात को भी उठाया कि 2018 से लगातार मांग उठ रही है कि अतिक्रमण हटाने के नाम पर किसी भी परिवार को बेघर नहीं किया जाना चाहिए। इस पर सरकार अपनी राय स्पष्ट करे।

2018 में उच्च न्यायलय ने आदेश दिया था कि देहरादून की कई मलिन बस्तियों को हटाया जाये। जन आंदोलन होने के बाद सरकार द्वारा अध्यादेश लाया गया, जिसके अंतर्गत तीन साल के लिए बेदखली की प्रक्रिया निलंबित की थी। मार्च 2021 में फिर आंदोलन होने के बाद सरकार ने घोषित किया कि अध्यादेश तीन साल और के लिए एक्सटेंड किया जा रहा है। लेकिन कुछ सप्ताहों से खबर आ रही है कि हल्द्वानी, देहरादून, रुद्रपुर, और अन्य जगहों में मलिन बस्तियों को उजाडा जा रहा है। जब तक अध्यादेश है, इस कारवाई पर रोक क्यों नहीं है? वक्ताओं ने कहा कि आश्रय का अधिकार सरकार की जिम्मेदारी है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर किसी भी परिवार को बेघर नहीं किया जाना चाहिए।

किसी भी परिवार को बेघर करना बच्चों, बुजुर्गों, गरीबों और बीमार व्यक्तियों के लिए घातक हो सकता है। इसलिए इसपर कानूनी रोक होना चाहिए। इसके अतिरिक्त मजदूर और गरीब वर्ग को किफायती आवास न मिलना, यह सरकार की गलत नीतियों का नतीजा है। जैसे मार्च 2021 में ही संयुक्त जन आंदोलन द्वारा मांग उठायी गयी थी, सरकार पारदर्शिता के साथ बस्तियों का नियमितीकरण करना चाहिए। जहाँ पर सरकार को लगता है कि बस्ती को पुनर्वास करने की जरूरत है, प्रभावितों की सहमति से ही पुनर्वास की योजना बने और पुनर्वास स्थल की दूरी पांच किलोमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। निर्माण मजदूर कल्याण कोष द्वारा सरकार मजदूर हॉस्टलों की स्थापना करे,जहां पर मजदूर निशुल्क रह सकें।

सरकार बस्तियों के निकट कम किराये पर भी आवास उपलब्ध कराये, जहाँ पर मजदूर रह सकें। इस योजना के निर्माण का काम निर्माण मजदूरों के सहकारी समितियों या प्रोड्यूसर कम्पनियों द्वारा किया जाय, जिससे व्यय भी कम होगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता हीरा सिंह बिष्ट, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव समर भंडारी, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, और आल इंडिया किसान सभा के राज्य सचिव सुरेंद्र सजवाण ने प्रेस वार्ता को संबोधित किया।