देहरादून।अंग्रेजो की सेना में भर्ती होकर 1815 से 1915 तक विश्व भर विभिन्न युद्धों में लड़ कर वीर गति को प्राप्त हुए बहादुर गोरखों की याद में निर्मित युद्ध स्मारक है लाल गेट, लेकिन इतिहास के पन्नो मे जल्द ही खोती जा रही लाल गेट मेमोरियल आर्क, भारत के देहरादून में गोरखा रेजिमेंट की स्मृति।
वर्ष 1814-16 में हुए नालापानी खलंगा में आंगला-नेपाली युद्ध में अंग्रेज ने अपने शत्रु वीर गोरखों की युद्ध लड़ने की अदभुत क्षमता से बहुत प्रभावित हुए साथ ही गोरखा भी उनसे बहुत प्रभावित हुए। अपने वीर प्रतिद्वन्दियों की अदम्य वीरता देख कर ब्रिटिशों ने गोरखों को अपनी सेना में शमिल करने का निर्णय लिया और वर्ष 1815 के प्रारंभ में 2nd King Edward VII’s Own Goorkhas (The Sirmoor Rifles) बटालियन की स्थापना की गई।
1st बटालियन नाहन (SIMOOR STATE) में लेफ्टिनेन्ट फ्रेडरिक यंग (बाद में ब्रिगेडियर) द्वारा 1815 में स्थापित की गई।2nd बटालियन 1886 में कर्नल एस ई बेचर द्वारा देहरादुन में स्थापित की गई थी और 1992 में हङकङ में दिल्ली दिवस के अवसर पर 1st बटालियन के सँग मिला दिया गया।3rd बटालियन 1917 में देहरादून में स्थापित की गई थी और 1920 में इसका विघटन (disbanded) कर दिया गया। इस रेजिमेंट को 1940 में पुनर्स्थापना (Re-raise) गया लेकिन 1946 में फिर से विघटन (disbanded) कर के 2nd बटालियन के सँग पुनर्गठन (reconstituted) कर दिया गया। 4th बटालियन 15 मार्च 1941 में देहरादून में स्थापित Raise किया गया था तथा देश की स्वतंन्रा के पश्चात 17 Feb 1948 को इसे 5th बटालियन 8th गोर्खा राइफल्स (सिरमूर राइफल्स) के तौर पर पुनर्रचना Redesignate किया गया।
देश की स्वत्रंता के पश्चात 2nd King Edward VII’s Own Goorkhas (The Sirmoor Rifles) की भारतीय सेना में सेवारत एक मात्र रेजिमेंट 5/8 जी आर है।5th बटालियन 1942 में स्थापित की गई तथा 1947 में विघटन (disbanded) कर दिया गया। 1947 में देश की स्वत्रंता के समय ब्रिटिश सभी रेजिमेण्टों को (4/2nd GR को छोड़ कर) अपने साथ इंगलैण्ड ले गये। बाद में सभी 2nd जी आर रेजिमेन्टों को 01 जुलाई 1994 में 6 जीआर, 7 जी आर और 10 जीआर के साथ मिला कर The Royal Goorkha Rifles का गठन किया गया.
प्रथम विश्व युद्ध से पहले 2 जी आर (2nd King Edward VII’s Own Goorkhas (The Sirmoor Rifles) के अधिकारियों ने देहरादून में रेजिमेंट के 100 वें वर्ष को यादगार बनाने के लिए 1915 में एक शताब्दी Centenary Memorial बनाने का निर्णय लिया। 1912 में देहरादून स्थित रेजिमेंटल लाइन्स के प्रवेश द्वार पर स्मारक का निर्माण शुरू हुआ। 1/2 जी आर (मैकफेरसन लाइन्स) और 2/2 जीआर (बीचर लाइन्स) की ओर जाने वाली सड़क पर एक शताब्दी स्मारक बनाया गया जिसे आज “लाल” गेट के नाम से जाना जाता है।
वीर गोरखालियों की विरासत, गोरखा रेजिमेंट और गोरखाली समुदाय की स्मृति जोहरी गाँव (उत्तर) और बीरपुर (पश्चिम) से लेकर क्लेमेंट टाउन (दक्षिण) और खलंगा-नालापानी किला (पूर्व) तक देहरादून क्षेत्र के आसपास बिखरी हुई है। सिरमूर बटालियन बाद में दूसरी किंग एडवर्ड सप्तम की अपनी गोरखा राइफल्स बन गई और गढ़ी कैण्ट, देहरादून स्थित लाल गेट से उनका गहरा संबंध था। देखभाल और सुलभ जानकारी की गंभीर कमी के कारण देहरादून क्षेत्र में गोरखाओं की विरासत, इतिहास धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है।
प्रत्येक वर्ष 07 जून तानबिनगान दिवस के अवसर पर 5/8 जी आर (सिरमूर राइफल्स) पूर्व सैनिक संगठन देहरादून के आफिसर्स, जे सी जो एवं जवान द्वारा लाल गेट पर एकत्र हो कर युद्ध में वीरगति प्राप्त हुये अपने वीर पुर्खों को श्रद्धाजंली अर्पित करते हैं।
आज इस अवसरपर कर्नल एस०सी० नैथानी , कर्नल एन०एस० थापा, कर्नल युवराज लामा, आ०कै० तिलकराज गुरूंग, सुबेदार दीपक सिंह थापा, आ०कै० रोबिन राना, सुबेदार गंगा बहादुर गुरूंग, सुबेदार कुंबा सिंह थापा, नायब सुबेदार धन बहादुर थापा उपस्थित थे ।