पितृों की अनदेखी है पितृदोष का मुख्य कारण

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देहरादून। अपनी जीवन शैली में मसरूफ होना और सिर्फ अपने परिवार को थोड़ा भी समय देने के बजाय बस अपनी नौकरी और व्यवसाय आदि को तवज्जो देना भी एक कारण है आज की सुविधा के भरी दुनिया में लोग खुद में इतने ज्यादा व्यस्थ हो गये है जिसके कारण व उन्ही के परिवार के जीवित व मृतकों की सेवा से काफी दूर हो चुके हैं।जिसके चलते कई बार पूरे परिवार को पितृ दोष के अभिषाप को झेलना पड़ता है। इस गलती को ठीक करने के लिए परिवार के समस्त सदस्यों को कुछ हिन्दु धर्म के अनुसार अनुष्ठान करना बहुत जरूरी है।

पितृदोष क्या होता है अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद विधि विधान से अंमिम संस्कार न किया जाए या किसी की अकाल मृत्यु हो जाए तो व्यक्ति से जुड़े परिवार की कई पीढ़ियों को काफी लम्बे समय तक पितृदोष के दंश को झेलना पड़ता है। इसके लक्षणों से मुक्ति के लिए जीवन भर उपाय करने की जरूरत होती है। पितृदोष के लक्षण संतान न होना, संतान हो तो विकलांग,मंदबु़िद्ध या चरित्रहीन अथवा होकर मर जाना। नौकरी, व्यवसाय में हानि होना बरकत का जिन्दगी से दूर रहना।

एक परिवार के सदस्यों में एकता न होना और हमेशा घर में अशांति होना, घर के सदस्यों में एक या एक से अधिक व्यक्ति का अस्वस्थ रहना और उपचार करवाने के बाद भी ठीक न होना।घर के युवक व युवतियों के विवाह में रूकावट आना, अपनों के जरिए धोखा मिलना, दुर्घटना आदि होना और उनका पुनरावृति होना। घर में होने वाले शुभकार्यों व शादी व्याह जैसे मांगलिक कार्यों में विघ्न पड़ना, परिवार के सदस्यों में किसी को प्रेत बाधा होना आदि समस्याओं से ग्रस्त होना और घर में हमेशा तनाव और कलेश रहना पितृ दोष वालों के लिए समस्या बने रहते हैं।

पितृ दोष होने के मुख्य कारण पितरों का विधिवत संस्कार न किया जाना, मृत्यु उपरांत मृत जनों का श्राद्ध न होना, पितरों की विस्मृति या अपमान किया जाना, परिवार का धर्म के विरूद्ध आचरण रखना, और वृक्ष, फल लदे, पीपल, वट इत्यादि को कटवाना। नाग की हत्या करना या उसकी मृत्यु का कारण बनना, गौहत्या या गौ का अपमान करना। नदी, कूप, तड़ाग या पवित्र स्थान पर मल-मूत्र विसर्जन करना। कुल देवता, देवी इत्यादि का अपमान किया जाना, और पूर्णिमा, अमावस या किसी भी पवित्र तिथि पर संभोग करना या किसी भी पूज्य या अन्य स्त्री के साथ अवैध सम्बंध बनाना।

अपने जीवन को पितृ दोष के मुक्त रखने के लिए कुछ आसान उपायों में से श्राद्ध पक्ष में नियमित तर्पण व श्राद्ध इत्यादि करें। पंचमी, अष्ठमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा आदि को पितरों के लिए नियमित दान करें। घर में भगवत गीता का पाठ विशेषकर सातवें अध्याय का पाठ नित्य करें। पीपल की पूजा, उसमें मीठा जल व तेल का दीपक नित्य लगाए और उसकी परिक्रमा करें। हनुमान बाहुक का पाठ, रूद्राभिषेक, देवी पाठ नित्य करें।

श्रीमद्धागवत के मूल पाठ घर में श्राद्धपक्ष मंे या सुविधा अनुसार करवाएं, गाय को हरा चारा, पक्षियों को सत्य धान्य कुत्तों को रोटी व चीटियों को नित्य रूप से चारा डालें। ब्रहमण कन्या को भोजन करवाएं, सूर्य को नियिमित रूप से ताबें के पात्र से जल चढ़ाए और प्रत्येक रविवार को धर में परिवार के सभी लोग गायत्री मंत्र से यज्ञ आदि करें।