सकारात्मक सोच और स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप स्वयं को दूसरों की सेवा में खो दें

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ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने   वल्र्ड थिंकिग डे के अवसर पर ‘सरल और सहज विचारों से युक्त जीवन,  करूणा और दयालुता से युक्त हृदय एवं ‘जियो, जीने दो और जीवन दो’ का मंत्र दिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि दुनिया का एक बड़ा हिस्सा एक ऐसे दौर से गुजर रहा है ऐसे में उन्हें ’सहयोग, सहानुभूति और सेवा’ की अत्यधिक जरूरत है इसलिये हम सभी को जियो, जीने दो और जीवन दो के सूत्र को आत्मसात कर जीना होगा, तभी हमारा भविष्य और हमारा पर्यावरण सुरक्षित रह सके। स्वामी जी ने कहा कि ‘सकारात्मक सोच और स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप स्वयं को दूसरों की सेवा में खो दें’। हमारे ऋषियों ने भी जीवन के यही सूत्र दिये हैं कि दूसरों के कल्याण के लिये अपने आप को समर्पित कर देना ही जीवन का वास्तविक सार है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह समय आत्म केंद्रित जीने का नहीं बल्कि परमार्थ केंद्रित होकर जीने का है।

श्री मद्भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ’सर्वभूत हिते रताः।’ व्यक्तित्व की सही पहचान और आंतरिक शक्ति की अनुभूति परोपकार और परमार्थ की भावना से ही होती हैं। जैसे-जैसे स्वभाव में परोपकार और सेवा के दिव्य गुणों का समावेश होता है वैसे ही अहंकार, घृणा और भेदभाव समाप्त हो जाता है। स्वामी जी ने कहा कि सेवा और सहानुभूति से समाज में एकजुटता आती हैं तथा जीवन का वास्तविक आनन्द एवं तृप्ति की अनुभूति भी तभी होती है जब हम परोपकार के लिये जियें।स्वामी जी ने कहा कि अपनी इच्छाओं के लिये जीना स्वार्थ पूर्ण जीवन है और आवश्यकताओं के लिये जीना से परोपकार और परमार्थ का मार्ग भी स्पष्ट होता है। आवश्यकतायें सार्वभौमिक भी हो सकती है जिससे कई व्यक्तियों को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्राप्त हो सकता है इसलिये सहायता, सहानुभूति और सेवा से युक्त जीवन जियें ताकि अन्तिम छोर पर खड़ा व्यक्ति भी गरिमापूर्ण जीवन जी सके।