देहरादून- 18 अक्टूबर 2022- विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के दसवें दिन की शुरुआत ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के अंतर्गत श्री विजय दत्त श्रीधर द्वारा राष्ट्र, संस्कृति और धरोहर के ऊपर वार्ता रखा गया। इस वार्ता में विजय दत्त श्रीधर बेंजामिन फ्रैंकलीन के एक कोट के साथ शुरुआत करते हैं वह कहते हैं कि ’इंसान को या तो कुछ ऐसा सार्थक लिखना चाहिए जिसे खूब पढ़ा जाए या फिर कुछ ऐसा सार्थक किया जाना चाहिए जिसके बारे में खूब लिखा जाए’।
बेंजामिन फ्रैंकलिन के इस कोट के साथ उन्होंने सभा में मौजूद सभी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, फिर उन्होंने विज्ञान और कला के अंतर को समझाया और उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि कैसे विज्ञान और कला में फर्क होता है। उन्होंने छोटी-छोटी कहानियों से कला, सहित और संस्कार को समझाया और उसे विरासत में मिली जानकारी को सहेजने का काम हमारे युवा लोग कैसे कर सकते हैं उसे भी विस्तार पूर्वक से बताया। वे कहते हैं कि विरासत को संभालना अगर किसी से सीखना है तो उसे गौरा देवी से सीखना चाहिए। उन्होंने चमोली के चिपको आंदोलन का जिक्र किया और कहा कि किस तरह से हमारे पहाड़ की महिलाएं अपने विरासत, धरोहर और प्रकृति की यह अद्भुत संपदा को सहेजने का काम करती है उसे हम गौरा देवी से सीख सकते हैं।
वे राष्ट्र, संस्कृति और धरोहर कि बातें को आगे बढ़ाते हुए चाणक्य के नीतियों और उसके उपयोग राज्य के रक्षा के लिए कैसे करना चाहिए उसे भी विस्तार से बताया। चाणक्य के नीतियों कि मदद से किस तरह से हम अपने विरासत को बचाना, संभाल के रखना और उसका इस्तेमाल करना चाहिए यह आज के युवा वर्ग को चाणक्य पढ़कर सीखने की जरूरत है। वे चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि योग हमारे भारत से सभी जगहों पर फैला और अब वह विश्व का एकमात्र ऐसा साधन है जिसे लोग हर सुबह-शाम अपनाने के लिए तैयार हैं।
कुछ साल पहले योग को हम उतना नहीं जानते समझते थे परंतु जब योग अमेरिका और यूरोप से होते हुए हमारे भारत में योगा बनकर आया तब हम सब उसे खूब समझने लगे और सराहनें लगे और अपनी दिनचर्या में शामिल करने लगे। इसमें मेरा कहने का तात्पर्य है कि हमारे. हमारे भारत में बहुत कुछ पहले से विद्यमान है परंतु हम उसे समझने में निरंतर देर कर देते हैं और इसी का फायदा बाहर के देशों के लोग उठाते हैं, और यहीं पर हमें समझ में आता है कि हमारा राष्ट्र, संस्कृति और धरोहर को सहेजना कितनी जरूरत है। अपने वक्तव्य में उन्होंने गांधीजी और चंपारण का भी जिक्र किया जिसमें वे बताते हैं कि किस तरह से गांधीजी अपनी संस्कृति और धरोहर को बचाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे थे। अंत में उन्होंने विरासत के आयोजकों को धन्यवाद दिया और उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन से हमारी नई पीढ़ी के लोगों को हमारे संस्कृति और धरोहर को सहेजने का ज्ञान मिलता है
श्री विजय दत्त श्रीधर एक भारतीय पत्रकार, लेखक और माधव सप्रे म्यूजियम ऑफ न्यूजपेपर्स एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के संस्थापक हैं। उन्हें भारत सरकार द्वारा 2012 में चौथे सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। वे माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी के जर्नलिज्म एंड कम्युनिका विभाग के पूर्व निदेशक हैं और उन्होंने नवभारत टाइम्स के संपादक के रूप में काम किया है। वे लगभग 20 वर्षों तक मध्य प्रदेश विधान सभा की प्रेस दीर्घा समिति के सदस्य भी रहे हैं।
श्री श्रीधर ने 1984 में भोपाल में माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान (माधवराव सप्रे म्यूजियम ऑफ न्यूजपेपर्स एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट) की स्थापना की। उनके शिक्षक रामेश्वर गुरु द्वारा दान किए गए कुल 73 अखबारों और पत्रिकाओं को अब 11,000 वर्ग फिट में रखा गया है, जिसमें 17,000 टीले हैं। तब से इसे कई विश्वविद्यालयों द्वारा पत्रकारिता से संबंधित अध्ययन के लिए एक शोध केंद्र के रूप में अनुमोदित किया गया है और इसे राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। श्री विजय दत्त श्रीधर, सामाजिक कार्य में भी शामिल रहते हैं एवं उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं।
सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं रूचि शर्मा एवं सुजाता नायर द्वारा कथक और मोहिनीअट्टम नृत्य प्रस्तुत किया गया। जिसमे उन्होंने साथ मिलकर अपनी प्रस्तुति की शुरुवात श्री राम चंद्र (राग चरुकेशी) की आराधना से की उसके बाद सुजाता नायर जी ने अपनी एकल प्रस्तुति मल्लारी (राग गंभीर नाट्य) एवं गंगा तरंगम (राग रेवती) भरतनाट्यम में प्रस्तुति दी । उसके बाद रुचि शर्मा जी तीन ताल में ठाट बंदिश में कथक कि प्रस्तुति दी। फिर सुजाता जी ने (राग वकुला भरणम) में एक मीरा भजन एवम द्रोपति चीर हरण पर अभिनय किया।
रुचि जी ने गजल में अभिनय किया जिसके बोल “तुम्हारी अंजुमन से उठकर दीवाने कहां जाएंगे“ थे। उन्होंने भरतनाट्यम और कथक की सुंदरता का प्रदर्शन करते हुए तिलाना और तराना की जुगलबंदी के साथ समापन किया। उनकी संगंत में उनका साथ पंडित वी नरहरी (तबला), ध्वनित जोशी एवं श्री सुजेश मानोंन (वोकल) ,जयश्री नायर (नत्तुआंगम), निखिल प्रसाद नायर (मृदंगम) ने दिया।
रूचि शर्मा भारत के एक जानी मानी कथक नृत्यांगना है उन्होंने अपने नृत्य को सभी शास्त्रीय पहलुओं से परिष्कृत और मजबूत तकनीकों के साथ समृद्ध किया है। कथक नृत्य के लखनऊ, जयपुर और बनारस स्कूलों की पारंपरिक पेचीदगियों को आत्मसात करने के अलावा, रुचि ने तीन दशकों से अधिक समय से गुरु शिष्य परंपरा के तहत गुरु पंडित अनुपम राय के तहत वास्तविक शास्त्र को समझकर वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ अपने ज्ञान का विकास किया है
सुजाता नायर श्रीमती जयश्री नायर की बेटी और शिष्या हैं। एवं वे उपासना एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स, मुंबई की संस्थापक निदेशक भी है। सुजाता नायर तीन दशकों से अधिक समय से अपनी मां से भरतनाट्यम और मोहिनीअट्टम सीख रही हैं। वे एक विशेषज्ञ भरतनाट्यम नर्तकी हैं और उन्हें सर्वश्रेष्ठ गुरुओं से प्रशिक्षण और मार्गदर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। सुजाता ने मोहिनीअट्टम में अपने गुरुओं से प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है। सुजाता अनन्या महोत्सव, बांद्रा महोत्सव जैसे त्योहारों में भारत और विदेशों में प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में अपनी प्रदर्शन देती आ रही हैं।
सुजाता ने कुछ वर्षों के लिए कलामंडलम गोपालकृष्णन के तहत कथकली भी सीखी है और कुछ मंचों पर प्रदर्शन भी कि हैं। सुजाता संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय,भारत सरकार से राष्ट्रीय छात्रवृत्ति की प्राप्तकर्ता हैं। भारत की वह दूरदर्शन की ए ग्रेड कलाकार हैं, और “रंगा श्री“, “नृत्य शिवली“, “श्री सुदर्शन नाट्य पेरावी“ आदि उपाधियों की प्राप्तकर्ता हैं। सुजाता 25 से अधिक वर्षों से अपने मूल संस्थान उपासना में भरतनाट्यम और मोहिनीअट्टम पढ़ा रही हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में प्रतीक श्रीवास्तव द्वारा सरोद वादन कि प्रस्तुतियां दी गई। जिसमें उन्होंने विलाम्बित तीन ताल में राग रागश्री से शुरुआत की और उसके बाद (राग मालकौंस) के साथ उन्होंने प्रस्तुति का समापन किया। प्रतीक जी ने संगीतकार के रूप में अपनी यात्रा का आनंद लिया है, क्योंकि उनके परिवार से संगीत में होने का कोई दबाव नहीं था और उनके पास जीवन के अपने प्रयोगों का आनंद लेने का समय था लेकिन उनके हिसाब से उनका मूल हिंदुस्तानी शास्त्रीय है।
प्रतीक श्रीवास्तव को छः साल की उम्र से ही सरोद बजाने की कला उनके दादा पंडित रबी चक्रवर्ती, जो खुद मैहर घराने के प्रख्यात सरोद वादक थे, ने दीक्षा दी थी। प्रतीक ने 12 साल की कम उम्र में एक सरोद वादन कलाकार के रूप में अपनी यात्रा शुरू की, और अंततः विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगीत कार्यक्रमों और समारोहों में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक एकल वादक के रूप में अपनी पहचान बनाई। प्रतीक के अपने संगीत के प्रति अद्वितीय और समकालीन दृष्टिकोण ने उन्हें विभिन्न क्रॉस-सांस्कृतिक और प्रयोगात्मक संगीत परियोजनाओं में दुनिया के विभिन्न हिस्सों के प्रख्यात संगीतकारों के साथ सहयोग करने का अवसर दिया है।
संगीतकारों के परिवार में पैदा हुए प्रतीक के लिए भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपराओं में दिलचस्पी लेना काफी स्वाभाविक था। सरोद कला में उनका प्रशिक्षण और पालन-पोषण उनके चाचा डॉ. राजीव चक्रवर्ती द्वारा किया जाता रहा। वह वर्तमान में पं अजय चक्रवर्ती और पं. तेजेंद्र नारायण मजूमदार के मार्गदर्शन में है। प्रतीक ने कोलकाता में प्रसिद्ध साल्ट लेक संगीत सम्मेलन में एक कलाकार के रूप में अपना करियर शुरू किया और भारत एवं विदेशों में प्रतिष्ठित समारोहों में प्रदर्शन कर रहे है।
09 अक्टूबर से 23 अक्टूबर 2022 तक चलने वाला यह फेस्टिवल लोगों के लिए एक ऐसा मंच है जहां वे शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के जाने-माने उस्तादों द्वारा कला, संस्कृति और संगीत का बेहद करीब से अनुभव कर सकते हैं। इस फेस्टिवल में परफॉर्म करने के लिये नामचीन कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। इस फेस्टिवल में एक क्राफ्ट्स विलेज, क्विज़ीन स्टॉल्स, एक आर्ट फेयर, फोक म्यूजिक, बॉलीवुड-स्टाइल परफॉर्मेंसेस, हेरिटेज वॉक्स, आदि होंगे। यह फेस्टिवल देश भर के लोगों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और उसके महत्व के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का मौका देता है। फेस्टिवल का हर पहलू, जैसे कि आर्ट एक्जिबिशन, म्यूजिकल्स, फूड और हेरिटेज वॉक भारतीय धरोहर से जुड़े पारंपरिक मूल्यों को दर्शाता है।
रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृत्य, शिल्प, पेंटिंग, मूर्तिकला, रंगमंच, कहानी सुनाना, पारंपरिक व्यंजन, आदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुणः पहचाना जाने लगा है।
विरासत 2022 आपको मंत्रमुग्ध करने और एक अविस्मरणीय संगीत और सांस्कृतिक यात्रा पर फिर से ले जाने का वादा करता है।