माता मसानी मदानन चौगानन का इतिहास

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मसानी देवी को भगत ललिता मईया, शीतला मईया और मसानी माता के नाम से पुकार कर जयकारे लगाते हैं। गुड़गाँव के शीतला माता मन्दिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि महाभारत युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य के वीरगति प्राप्त होने पर उनकी पत्नी कृपि (शीतला माता) ने इसी स्थान पर ‘सती प्रथा’ द्वारा आत्मदाह किया था। उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया कि मेरे इस सती स्थल पर जो भी अपनी मनोकामना लेकर पहुँचेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। कहा जाता है कि गुड़गाँव में दो भाइयों पदारथ व सिंघा प्रारंभ से ही सदचरित्र व शील स्वभाव के थे। उस जमाने में दोनों भाइयों के पास हजा़ारों एकड़ जमीन थी। सिंघा की भजन वृत्ति और निठल्लेपन के कारण परिवार की औरतों में टकराव हुआ तथा जमीनों कें बंटवारे हो गए। सिंघा को 8 बिस्वा भूमि सौंप दी गयी। इस धरती पर बाद में अर्जुन नगर, भीम नगर, केम्प कालोनी, अर्बन स्टेट, शिवपुरी, शिवाजी नगर आदि आबाद हो गए। यह भूमि खाण्डसा तक फैली है, इसी भूमि पर गुरू द्रोणाचार्य का तालाब है। कहा जाता है कि गुरु द्रोणार्चाय ने यहां कौरवों व पाडवों को धनुर्विद्या व गजविद्या का प्रशिक्षण दिया था।

सिंघा की भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन मां शीतला देवी ने स्वप्न में उसे दर्शन दिए और वर दिया कि जिसे भी तू स्पर्श करेगा वह स्वतः ही कष्ट मुक्त हो जाएगा। सिंघा भक्त अपने महल से निकल कर उस तालाब के पास पहुंचा और तपस्या में लीन हो गया। उसने एक कच्ची मढ़ी बनाकर देवी पूजन प्रारम्भ किया। किवदन्ती है कि एक दिन तालाब की मिट्टी उठाते समय सिंघा को वह मुर्ति मिल गयी जिसे उसने मढ़ी में स्थापित कर दिया। यही बाद में माता शीतला देवी का मंदिर कहलाया। उल्लेखनीय है कि मुगल काल में हिन्दू मंदिरों व मूर्तियों को कुछ कट्टरपंथी बादशाह तालाबों में फिंकवा दिया करते थे। इसी भय से सूर्यास्त होने पर पुजारी मूर्ति को उठाकर अपने घर ले जाते रहे तथा सूर्योदय से पूर्व मूर्ति को स्नान इत्यादि कराके मंदिर में ले आया करते थे। कहा जाता है कि एक मुगल बादशाह ने कृपी माता की इस मूर्ति को तालाब में फिकवा दिया था। मूर्ति बाद में मिट्टी में दब गयी। समय ने करवट ली तथा सिंघा भक्त ने इस मूर्ति को बाहर निकलवाया और मढ़ी में रख दिया। मसानी देवी को भगत अजन्मी या होनी व योगमाया का अवतार के नाम से पुकारते हैं पर मसानी देवी चौगानन माता या चौगान की मसानी या चौगान वासिनी शक्ति कैसै बनी ये कोई नही बताता। चौगान या चौक की शक्ति का अाशीवाद भगवान कृष्ण ने माता शीतला को दिया था अब भगतो ने मसानी देवी या चौगानन माता या चौगान की मसानी या चौगान वासिनी शक्ति कैसै बना दिया ये भी कोई भगत नही बताता। एक प्राचीन कथा के अनुसार भगवान कृष्ण पांडवो और कोरवो दोनो पक्ष मे पूज्यनीय रहै है कृष्ण को 16 कला अवतार माना जाता है जब भी भगवान कृष्ण गुड़गाँव अाते तब माता शीतला उनका अतिथि सत्कार करती अौर पूज्य के रूप मे मान देती उनके अानै वाली राह को एक साधिका की तरह निहारती गुड़गाँव के किस राह से वे अायेगै पर उसका माता शीतला को पता ना चल पाने पर वो अपने पूज्य भगवान कृष्ण के पृथम दशँन ना कर पाती इस मंशा के हल स्वरूप भगवान कृष्ण ने माता शीतला को चौक की शक्ति का अाशीवाद दिया जैसै-जैसै भगवान कृष्ण गुड़गाँव के एक-एक चौक पार करते माता शीतला जान जाती कि वे किस राह से अायेगै। हिन्दू समाज मे पुजा सेवा के नाम पर भेदभाव होता था पुजा सेवा उस समय कुछ वगँ तक सीमित रह गई माता शीतला मन्दिर मे कुछ वगौ का ही पृवेश हो पाता था मसानी देवी को मदानण देवी को शुरूवात मे मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पूजा जाता था।

माता मदानण को सभी मसानी देवियों की रानी माना जाता है जिसे यक्षिणी भी कहते है इनका एक जैसा रूप नही होता मान्यता के अनुसार ये भी कोई भगत नही बताता इनका मैन रूप है क्या शुरूवात मे मसानी सात देवियाँ या सात बहनो के रूप मे पूजी जाती थी योगमाया के अवतार मे मसानी को चौगानन माता या चौगान की मसानी या चौगान वासिनी शक्ति कैसै बना दिया ये माता शीतला मन्दिर से जुडी एक प्राचीन कथा है इस के दो कारण है जब मां के भक्त सिंघा को लोग पूजने लगे इसे संयोग कहा जाए अथवा मां भगवती का आशीर्वाद कि निठल्ले सिंघा की कीर्ति जगत मे फैलने लगी तब मां शीतला ने सिंघा को सक्षात उसे दर्शन दिए और वर मागने को कहा तब सिंघा ने मां शीतला ने अपने नाम अमर होने का वर मांगा पर मां शीतला जानती थी नाम अमर किस मानव का होता है जो जगत मे हो ही नही उसका……तब मां शीतला ने सिंघा से एक बार अौर सोचने को कहा पर सिंघा जिद पर अडहा ही रहा जगत कीर्ति के लिए…….शीतला देवी ने मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्ति सात देवियाँ या सात बहनो (ये सात बहिने थी-आवड, गुलो, हुली, रेप्यली, आछो, चंचिक और लध्वी। ) को मसानी मां के रूप में बुलाया अौर सिंघा के वरदान को पूरा मन चाहा पु्रा किया मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्तियाँ उस समय तामसिक पूजा विधान मे पूजी जाती थी अधिकतर साधक उन्है मदिरा बकरे कि बलि लगाते थे ये शक्तियाँ सभी सात द्वीपों में रात्रि में रास रचाती है यानि माया दिखाती है साधको के मन भावना के हिसाब से भोग लेती है देवी की माया का स्वरुप साधको के मन भावना के हिसाब से ही सामने अाता है मतलब साधक खुशी से जो दे सके शीतला देवी के कथन अनुसार सिंघा के घर मे मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्तियो का घर की अोर रूख हुअा

इस कारण अाज सिंघा का नाम अमर है बाकि परिजनो को मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्तियो कि बलि होना पडा… सिंघा के परिजनो मे किसी के ना बचने पर मां शीतला के थान का सारा पैसा सरकारी फंड मे जाता है ……जिसके परिवार के लोगो ने मसानी थान की स्थापना करवाई वे अाज भी मसानी थान की सेवा मे है दादा समय से………तब से अाज भी शीतला देवी के उधार को मसानी मां लेने अाती है चौगान पर वास मां शीतला ने मसानी मां को अपने नाम के जोडै पर दिया क्यो कि शीतला पूरी सात्विक थी मसानी मां पूरी तामसिक थी इस लिए जिसकी जो स्थापना की गई, उसमें सात्विक और तामसिक दोनों ही पूजा विधान रखे गये। मठ मे सात्विक चौक मे तामसिक……सिंघा के परिजनो को बलि लेने पर मसानी मां गुस्सै मे चौक चौक माया की हा हा का्र मचाने लगी वो देवी किसी भी प्रकार शांत न हुयी तब पीरो फकीरो ने अान दे देकर देवी को शांत किया अौर तब मसानी मां चौक पर मांसाहार करने वालो से मन्दिर की स्थापना करवाई अपना खुला परचा व रूप दिखा कर जिसके परिवार के लोग अाज भी मसानी थान की सेवा मे है मुगल काल में हिन्दू मंदिरों से मूर्तियों को कुछ कट्टरपंथी बादशाह तालाबों में फिंकवा दिया करते थे। इसी कारण भोग मे नन्ही सुअर की बची की माँग करी देवी ने कहा मैने एक काफ़िर को बचाने के लिए अवतार लिया है ताकि हिन्दू मंदिरों को अाँच न अायै इसलिए मेरा आहार भी काफिरों वाला ही होगा ! मै इस्लाम के खिलाफ कार्य करूंगी ! मुझे सूअर और शराब का भोग लगेगा !उस दिन से आज तक देवी को सूअर और शराब का भोग लगाया जाता है ! पहले मसानी थान मे सूअर और शराब का भोग लगने मात्र से किसी मुगल काल के कट्टरपंथी बादशाह ने पाँव रखने की हिम्मत नही की अब भेट बलि की मान्यता करने वाले इस वगँ ने एक नयी लाइन की शुरूवात मिली – भगताई ये सात्विक और तामसिक दैवी-देवताओं का यह अनुठा गठबन्धन था। प्रारम्भ मे अनेकों साधक इसी नियम को मानते हुऐ पुजन करते आ रहे है।

किन्तु इन साधकों में भी दो मत बन गये- एक सात्विक दुसरा तामसिक। सात्विक साधक साधना पूर्ण होने पर खीर-हलवे मीठै पकवान आदि का भोग लगाते है। किन्तु तामसिक साधक साधना पूर्ण होने पर मदिरा और बकरे आदि कि बलि लगाते है। सिद्धियाँ दोनों ही साधकों को प्राप्त होती है और दोनों ही साधक अपनी इच्छा अनुसार अपनी सिद्धियों का उपयोग करते है। चौक मे मसानी थान की सेवा मे पाँच-वीरों की साधना को प्रधानता दी गई इन वीरों में जहाँ जाहर वीर और हनुमन्त वीर सात्विक है, वहीं नारसिहं, भैरव वीर और अंघोरी वीर तामसिक है। जैसै माँ शीतला का मसानी देवी उधार का हिशाब लेने वाली है वैसै बाबा सवलसिंह बाबरी देवी मसानी के दूत है ! किन्तु पाँच वीरों की साधना करने वाला साधक,अपनी इच्छा अनुसार अपनी सिद्धि का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे। यहाँ पर साधक या आम व्यक्ति केवल अर्जी लगा कर (प्रार्थना करके) छोड़ देता है। उस अर्जी का फैसला उन पाँच वीरों के हाथ में होता है। ये पाँच वीर साधक की अर्जी को सुनकर, उसके भाग्य, कर्म, श्रद्धा और भक्ति को देख कर ही फैसला करते है। हिन्दुओं की इस नई व्यवस्था को देख कर ही, मुस्लिम सम्प्रदाय में भी पाँच पीरों की स्थापना हुई। इन पाँच पीरों को कुछ साधक पाँच-बली भी कहते है। अस्त बली, शेरजंग, मोहम्मद वीर, मीरा साहब और कमाल-खाँ-सैयद जैसी व्यवस्था पाँच पीरों-वीरों की साधना में थी। आज के समय में इस परम्परा का रूप अनेकों ही जगह देखा जा सकता है। पाँच हिन्दू वीर और पाँचों मुस्लमानी पीर इकठ्ठे पूजे जाने लगे। अधिकतर हिन्दू पाँच वीरों के साथ-साथ पाँच पीरों को भी मानने लगे। वहीं पाँचों पीर सुख और समृद्धि प्रदान करते थे। इसी प्रकार सिख धर्म में भी पंच प्यारे हैं। आज के समय सात्विक कम तामसिक आवेश धीरे-धीरे बढने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ है धीरे-धीरे मूल साधनाऐं और सात्विक साधनाऐं समाप्त होने लगी और सभी जगह तामसिकता ने स्थान ग्रहण कर लिया। नौ दुर्गाओं का स्थान 64 योगनियों ने ले लिया और साथ-ही-साथ डाकनी, शाकनी की पूजा, नवदुर्गा के सात्विक और तामसिक साधकों ने प्रारम्भ कर दी। मसानी देवी अजन्मी या होनी व भगवान कृष्ण की योगमाया का अवतार होके भी यह मां शीतला के जोडै मे पुजती अा रही है वैसै योगमाया को भगवन श्रीकृष्ण कि बहन कहा जाता है | जो वरदान भगवान कृष्ण ने माता शीतला को चौक की शक्ति अौर ज्ञान का दिया था उसका अाशीश मसानी मां को मां शीतला ने अपने नाम के जोडै पर दिया अामतौर पर चौक पर पुजने वाले सब देव -देवी यक्ष व यक्षिणी की तरह अपना रूप शक्ति दिखाते है मान्यता के अनुसार ये कोई भगत नही बता पाता कि इनका मैन रूप है क्या बस पुजने या पुकारने मात्र से ये साधको के साथ हो जाते है देवी का स्वरुप साधको के मन भावना के हिसाब से मे समक्ष अाता है परिणामस्वरूप ये शक्ति मन भावना के हिसाब से परचा देती है योगमाया की माया का मूल स्वरुप साधक की समझ से परे भी माना जाता है शुरूवात मे मैदान, कल्लर, घर के थानो मे पुजने वाली शक्तियाँ सात देवियाँ के रूप मे पूजी जाती थी जैसै मसानी, धुतनी, मदानन, जेवरवाली,खादरवाली या जिस देवी का भोग घर के बाहर दिया जाता हो जब से मसानी मां को मां शीतला ने अपने नाम के जोडै पर दिया चौक पर थान दिया तब से सब देवियाँ के थान व चढावा चौक पर जाने लगा पर अाज भी मैदान, कल्लर, घर के बाहर मे पुजने वाली काफी शक्तियाँ है जो अपनी मूल जगह नही छोड पाई माँ मसानी, माता धुतनी, मात मदानन, माई जेवरवाली व शीतला भगवती की साधना भक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करने वाली है।

इसी योगमाया के प्रभाव से समस्त जगत आवृत्त है। जगत में जो भी कुछ दिख रहा है, वह सब भगवान कृष्ण की योगमाया की ही माया है। हिन्दुओं की धमँ व्यवस्था (हिन्दुओं को मुस्लिम बनाने के लिए)बदलने के लिए मुस्लिम सम्प्रदाय मुगल काल से हिन्दू मंदिरों से मूर्तियों को कुछ कट्टरपंथी बादशाह तालाबों में फिंकवा दिया करते थे। इसी कारण माता चौगानन मसानी ने भोग मे नन्ही सुअर की बची की माँग करी जिस कारण अाज तक कोई मुगल बादशाह इनके मन्दिर मे दाखिल नही हो पाया ना हो पायेगा……दाखिल……मन्दिर मे…… सिंघा के परिजनो को बलि लेने पर मसानी मां गुस्सै मे चौक चौक माया की हा हा का्र मचाने लगी (चौक से अाने-जाने लोगो को ऊपरी हवा का असर होने लगा ) वो देवी एक समय मे मैदान, कल्लर, घर के थानो मे खुली भेट लेती थी अब भगतो के उतारा करके भी रोग हटता नही लोगो का…. पीर,फकीर,वीर सबका चढावा उतारा करके भी रोग हटता नही ये मसानी की माया की हा हा का्र….है……..जो वरदान भगवान कृष्ण ने माता शीतला को चौक की शक्ति अौर ज्ञान का दिया था उसका अाशीश मसानी मां को मां शीतला ने अपने नाम के जोडै पर दिया था चौक पर थान भेट-बलि के लिए मन्दिर की स्थापना करवानी थी……तब मसानी मां चौक पर अपने मन्दिर की स्थापना करवाई अपना खुला परचा व रूप दिखा कर जिस परिवार के लोगो ने चौक पर मन्दिर की स्थापना की वो अाज भी मसानी मां की सेवा मे है जिसके परिवार के लोग अाज भी मसानी थान की सेवा करते एक ही खानदान के लोग ये सेवा निभा रहे है……… अाज के समय मे मसानी मन्दिर साफ भी रहता है जब भगतो ने मसानी मां को मन्दिर थान के अासन पर बिठाया तब मसानी मां की मैन मुर्ति के अागे भेट-बलि दी जाती थी परिसर की दिवारे सुअर की बची के खुन की छाप लाल रंग मे रंगी रहती थी चारो अोर फशँ पर खुन की छाप मिलती थी लोग अपनी साख से भेट करते थे……अगर अाप सबको पुराने मन्दिर की छाप बैठकर या मसानी मां की माया को अनुभव लेना है तो कृपा एक बार अाज के मसानी मां के थान की बगल वाले भेट-बलि के कमरे मे बैठने का मन बनाअो अाप समझ जाअोगै इनका मैन रूप है क्या बस पुजने या पुकारने मात्र से ये साधको के साथ क्यो हो जाती है मसानी मां की माया का स्वरुप साधको के मन भावना के हिसाब से कैसै सामने अाता है कुछ समय मे ये शक्ति मन भावना के हिसाब से परचा दिखा देती है मसानी मां की माया का मूल स्वरुप साधको की मन भावना के हिसाब से भी माना जाता है