देहरादून: ऑल इंडिया नाबार्ड ऑफिसर्स एसोसिएशन ने वित्तीय सेवाएं विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी एक आदेश द्वारा किए गए वेतन संशोधन में विसंगतियों के विरोध में 16 दिसंबर 2022 को पूरे दिन के अखिल भारतीय स्तर के हड़ताल का आह्वान किया है। इस कॉल को अब सेवानिवृत्त कर्मचारियों द्वारा भी समर्थन दिया गया हैं क्योंकि यह वेतन संशोधन भविष्य के लिए सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मचारियों और पूरे संगठन के लिए भी निहितार्थ रखता है । दिनांक 14 सितंबर 2022 के डीएफएस के आदेश के परिणाम स्वरूप दिनांक 21 सितंबर 2022 को प्रशासनिक परिपत्र जारी होने के बाद से ही नाबार्ड के अधिकारी आंदोलन पर हैं।
पिछले दो महीनों में डीएफएस के अधिकारियों को दिए गए कई अभ्यावेदनों और कई दौरों की बातचीत के बाद (क्योंकि तब नाबार्ड में कोई नियमित अध्यक्ष नहीं थे और डीएफएस के एक अतिरिक्त सचिव 01 अगस्त, 2022 से 06 दिसम्बर 2022 तक अंतरिम प्रभारी थे), उनके पास हड़ताल पर जाने के अलावा कोई नहीं विकल्प नहीं बचा है। इसके बाद संसद तक मार्च निकाला जाएगा और भूख हड़ताल आंदोलन भी किया जाएगा । सबसे पहले, इस आदेश ने अधिकारियों के समान कैडर के लिए दोहरे और विभेदित वेतन की शुरुआत की – 1982 में नाबार्ड के गठन के समय भारतीय रिजर्व बैंक से आए स्टाफ के लिए अधिक वेतन और नाबार्ड द्वारा सीधे भर्ती किए गए स्टाफ के लिए कम वेतन निर्धारित किया गयाअधिकारी के ग्रेड के अनुसार भुगतान किए जाने वाले ग्रेड भत्ते को घटाया गया।
हालांकि, डीएफएस के आदेश के अनुसार, निचले ग्रेड के अधिकारी उच्च ग्रेड के अधिकारियों की तुलना में अधिक ग्रेड भत्ता प्राप्त कर रहे हैं, जिससे नामकरण “ग्रेड” का मजाक बनाया जा रहा है। यह एक ही संगठन में ‘समान काम के लिए समान वेतन’ मानक का उल्लंघन है ।यहाँ यह उल्लेख उचित होगा कि दोनों श्रेणी के अधिकारी – जो 1982 में भारतीय रिजर्व बैंक से आए थे और जो नाबार्ड द्वारा भर्ती किए गए थे – समान वेतन और भत्ते प्राप्त कर रहे थे। पिछले 35 वर्षों में सात समझौतों के माध्यम से इस प्रथा का पालन किया गया। आठवें समझौते (2017-2022) की अवधि) में नाबार्ड द्वारा भर्ती किए गए अधिकारियों के भत्तों में कटौती इतनी भारी है कि इसने भारतीय रिजर्व बैंक से आए अधिकारियों की तुलना में उनकी सकल परिलब्धियों में 10% से 12% की कमी कर दी है, जिसका पेंशनसहित सेवानिवृत्ति लाभों पर भारी प्रभाव पड़ा हैं।
दिलचस्प बात यह है कि डीएफएस मंहगाई भत्ते को ध्यान में रखे बिना सरल गणित करने में विफल रहा और इस तरह, पूर्व-संशोधित और संशोधन के बाद के वेतनमानों में महंगाई भत्ते के साथ समायोजित होने पर ग्रेड भत्ते का शुद्ध प्रभाव सभी ग्रेडों में नकारात्मक है ।इस आदेश ने निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित समझौते का उल्लंघन करते हुए एक और भत्ता भी कम कर दिया है और इसे क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के अधिकारियों के बराबर कर दिया है, जो बैंकिंग विनियम अधिनियम, 1949 के तहत नाबार्ड द्वारा पर्यवेक्षण की जा रही संस्थाएँ हैं ।
इस तरह के अपमान और वित्तीय नुकसान ने नाबार्ड के अधिकारियों को इस वर्तमान आंदोलन और हड़ताल के आह्वान के लिए प्रेरित किया है ।नाबार्ड में वेतन संशोधन बैंकिंग जगत में वेतन संशोधन हर पांच वर्ष में होता है, इसलिए नाबार्ड और भारतीय रिजर्व बैंक में भी होता हैं। 1982 में नाबार्ड के गठन के बाद वर्तमान समझौता 8 वां समझौता था। पिछले चालीस वर्षों में पिछले सभी सात समझौतें दोनों संस्थानों के बीच ऐतिहासिक और जैविक लिंक के कारण लिए भारतीय रिजर्व बैंक की तर्ज पर हुए हैं ।वर्तमान अवधि 2017-22 के लिए वेतन संशोधन का प्रस्ताव वित्तीय सेवाएं विभाग,वित्त मंत्रालय, भारत सरकार को एसोशिएशनों के साथ विस्तृत बातचीत और नाबार्ड के निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदन के बाद मार्च 2022 में भेजा गया था.इसके लिए नाबार्ड द्वारा 2017—18 से प्रावधान किया गया था जो कि संचयी रूप से रुपए 880 करोड़ हैं जो वेतन, भत्तों, अधिवर्षिता लाभ आदि के बकाए के कारण होने वाले संपूर्ण व्यय का ध्यान रखने के लिए पर्याप्त है और इस पूरे व्यय का आकलन रुपए 680 करोड़ हैं ।2017-22 के वेतन करार की अवधि की वैधता 31 अक्टूबर 2022 तक थी और अगला संशोधन 01 नवंबर 2022 से होने के कारण, नाबार्ड के एसोशिएशनों ने शीघ्र समाधान की मांग को लेकर आंदोलन किया। डीएफएस के अनुरोधों के आधार पर, एसोशिएशनों ने जुलाई 2022 (मानसून सत्र के दौरान) में संसद तक मार्च के किए गए आह्वान को और 30 अगस्त 2022 को प्रस्तावित हड़ताल को स्थगित कर दिया था ।डीएफएस ने 14 सितंबर 2022 को माननीय वित्त मंत्री के अनुमोदन के बाद, उक्त उल्लिखित विसंगतियों के साथ वेतन संशोधन को आखिरकार मंजूरी दे दी ।
नाबार्ड के बारे में ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, लघु उद्योग, कुटीर और ग्रामीण उद्योगों (यानी एमएसएमई) और अन्य संबद्ध आर्थिक गतिविधियों के प्रचार और विकास के लिए ऋण के विनियमन करने और अन्य सुविधाएं प्रदान करने करने के लिए 1981 में संसद के एक अधिनियम द्वारा विकास बैंक के रूप में नाबार्ड का गठन किया गया था । एकीकृत ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने और ग्रामीण क्षेत्रों की समृद्धि को सुरक्षित करने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक के कार्यों को विकेंद्रीकृत करने के लिए इसके तीन विभागों को एकत्र करके नाबार्ड का गठन किया गया था । नाबार्ड को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) और ग्रामीण सहकारी बैंकों (आरसीबी) की पर्यवेक्षी शक्तियां सौंपने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 और बैंकिंग विनियम अधिनियम, 1949 में उपयुक्त संशोधन किए गए ।नाबार्ड की सिफारिश के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक इन बैंकों को लाइसेंस देने और लाइसेंस रद्द करने का फैसला करता है । इसके गठन के दौरान, भारतीय रिजर्व बैंक के कर्मचारियों को इस गंभीर आश्वासन के साथ नाबार्ड में जाने के लिए प्रोत्साहित किया गया था कि उनके वेतन, भत्ते और अधिवर्षिता लाभ और भारतीय रिजर्व बैंक के कर्मचारियों को मिलने वाले अन्य सभी लाभ नाबार्ड के कर्मचारियों को भी मिलेंगे. नाबार्ड अधिनियम, 1981 की धारा 50 की उप- धारा (11) के रूप में उपयुक्त प्रावधानों को शामिल किया गया था, जो ‘वेतन के भुगतान और अन्य परिलब्धियों, सेवानिवृत्ति लाभों और ऐसे व्यक्तियों को छुट्टी के लिए पात्रता की रक्षा करता है जिनकी सेवाएं इस प्रकार नेशनल बैंक में स्थानांतरित की जाती हैं और जो नेशनल बैंक द्वारा नियुक्त किए जाते हैं’ । इस जैविक कड़ी के कारण पिछले चालीस वर्षों से नाबार्ड के कर्मचारियों को सात वेतन समझौतों के माध्यम से भारतीय रिजर्व बैंक की तर्ज पर वेतन और भत्ते मिलते रहे हैं ।
इन वर्षों में, भारतीय रिजर्व बैंक के विकेंद्रीकृत कार्य और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और ग्रामीण सहकारी बैंकों के पर्यवेक्षण के अलावा, नाबार्ड ने कई नवोन्मेषो की शुरुआत की, जो आज कृषि, सूक्ष्म ऋण, छोटे, सीमांत और काश्तकार किसानों के वित्तपोषण, कौशल विकास पर नीति निर्माण और आजीविका के मुद्दे का आधार बनते हैं और गरीबी उन्मूलन में शायक हो रहे हैं । नाबार्ड के कुछ नवोन्मेष ग्रामीण गरीब महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह आंदोलन, किसानों को ऋण देने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड योजना, वाटरशेड और वाडी, आदिवासी विकास कार्यक्रम, काश्तकार किसानों का वित्तपोषण, संयुक्त देयता समू मोड के माध्यम से मौखिक पट्टेदार और शेयर क्रॉपर्स, किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से किसानों का सामूहिककरण, ग्रामीण सहकारी बैंकों को कोर बैंकिंग समाधान प्लेटफॉर्म पर लाना और अब पैक्स के कम्प्यूटरीकरण के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करना हैं ।वित्तीय समावेशन में नाबार्ड का योगदान इतना प्रभावशाली है कि नाबार्ड को भारत सरकार द्वारा जी-20 अध्यक्षता की अवधि के दौरान वित्तीय समावेशन के लिए नॉलेज पार्टनर के रूप में नामित किया गया है । आज, नाबार्ड एकमात्र शीर्ष स्तरीय विकास बैंक है, जो कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए कार्यरत है।