पहुँचना ईश्वर के साम्राज्य तक-: कमलेश पटेल (दाजी)

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महान भारतीय योगी श्री परमहंस योगानंद ने न्यू टेस्टामेंट पर अपने भाष्य में लिखा है, “प्रभु यीशु के छोटे से मानव शरीर में महान क्राइस्ट चेतना, ईश्वर की सर्वज्ञ प्रज्ञा का प्रादुर्भाव हुआ जो सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है।” उन्होंने यह भी कहा, “ध्यान के दौरान इस चेतना से संपर्क का जो नित नवीन आनंद अनुभव होगा, वही वास्तव में क्राइस्ट का द्वितीय आगमन होगा। और यह भक्त की स्वयं की चेतना में घटित होगा।”

ध्यान का स्थान कई कारणों से धार्मिक संदर्भों से इतर माना जाता रहा है, परंतु वास्तविकता यह है कि ध्यान न केवल पूर्वी धर्मों के केंद्र में रहा है बल्कि अपनी उत्पत्ति के समय से ही ईसाई धर्म के भी केंद्र में रहा है। बाइबिल में ईश्वर पर ध्यान करने और अपने दैनिक जीवन में ईश्वर को स्थान देने को खूब प्रोत्साहित किया गया है।

उत्पत्ति 24:63, ‘न्यू इंटरनेशनल वर्ज़न:’ “वे एक दिन शाम को मैदान में ध्यान करने के लिए निकले और जैसे ही उन्होंने ऊपर देखा तो उन्हें ऊँट आते हुए नजर आये।

भजन संहिता 19:14, ‘न्यू इंटरनेशनल वर्ज़न: हे ईश्वर, मेरी चट्टान, मेरे उद्धारक, मेरे मुंह से निकले ये शब्द और मेरे हृदय का यह ध्यान आपको प्रसन्न कर दे!

हम देवदूतों के पत्रों में “ध्यान” के लिए ग्रीक शब्द का प्रयोग पाते हैं। विभिन्न धार्मिक परंपराओं में ध्यान ही एकमात्र समानता नहीं है। भगवतगीता, बाइबिल और विविध धर्मों के अधिकांश शास्त्रों में खूब एकता है। जीसस क्राइस्ट का वक्तव्य कि ‘ईश्वर का साम्राज्य तुम्हारे भीतर है’ और श्री कृष्ण की शिक्षा कि ‘ईश्वर को अपने हृदय में देखो’ में एक खूबसूरत समानता है।

प्रभु यीशु ने यहूदी भाषा में अपनी बात कही तो मोहम्मद साहब ने अरबी में और भगवान कृष्ण ने संस्कृत में। उन्होंने जो कहा वह ऊपरी तौर पर भाषाई भिन्नता के कारण अलग-अलग सुनाई पड़ता है। परंतु यदि विभिन्न भाषाओं में जो कहा गया, आप उसे अनुभव करें तो पाएंगे कि वे सभी एक ही सत्य कह रहे थे। प्रभु यीशु ने जिसे गॉड कहा और मोहम्मद साहब का जो अल्लाह से आशय था और जिसे भगवान कृष्ण ने परमात्मा कहा, वे सभी अंततः एक ही हैं।

मैं जब 11 या 12 वर्ष का था तो श्री रामकृष्ण परमहंस के सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित हुआ। वे भारत के एक सुप्रसिद्ध रहस्यवादी और अध्यात्मवादी व्यक्तित्व थे। मैं हिंदू मंदिरों में पूजा की विधियों से भी प्रभावित था। मेरी गहन आध्यात्मिक ललक को देखते हुए मेरे पिताजी ने घर के पास एक मस्जिद में एक इमाम से शिक्षा लेने को भेजा। वहां से मुझे जीवन में अनुशासन की सीख मिली। मेरा प्राचीन वैदिक ग्रंथों से भी परिचय हुआ और मैंने ईश्वर को संस्कृत शास्त्रों के द्वारा भी समझने का प्रयास किया। मेरी समझ यह है कि विभिन्न धर्मों में जो उद्धारक और पैगंबर अवतरित हुए, वे विभिन्न मतों में भेद और शत्रुता बढ़ाने नहीं आए थे। हमें उनकी शिक्षाओं का उस उद्देश्य के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए। कुछ लोग यह सोच सकते हैं कि दिव्य अवतार एक नया या अलग धर्म चलाने के लिए आते हैं परंतु क्या पता कि उनका वास्तविक उद्देश्य आध्यात्मिकता के दर्शन अर्थात् ईश्वर साक्षात्कार को पुनर्स्थापित करना रहा हो?

जब मैं कॉलेज में था तो मैंने ध्यान करना प्रारंभ किया। धर्म एवं विभिन्न आध्यात्मिक विचारधाराओं से मेरा परिचय, साथ ही मेरे पिताजी का प्रभाव और सबसे महत्वपूर्ण मेरी स्वयं की तड़प मुझे वहां ले आई जहां मैंने महसूस किया कि ईश्वर के प्रति मेरा प्रेम अब वास्तविक स्वरूप ले रहा है। ईश्वर का प्रेम वह है जो प्रभु यीशु ने भी महसूस किया और जिसे उन्होंने हम सब के साथ साझा किया। मुझे भी वही अनुभव हुआ जब मैंने ध्यान किया।

वह अनुभव उसी के समान है जो जॉन 15:9-11, न्यू इंटरनेशनल वर्ज़न में लिखा है: “जैसे पिता ने मुझसे प्रेम कियावैसे ही मैंने तुम्हें प्रेम किया है। अब मेरे प्रेम में रहो।

किसी आध्यात्मिक जिज्ञासु ने एक भारतीय योगी, नीम करोली बाबा से पूछा, “आपने क्राइस्ट की तरह ध्यान करने को कहा है। उन्होंने कैसे ध्यान किया था?” नीम करोली बाबा ने शांति से उत्तर दिया, “वे प्रेम में खो गये: बस उन्होंने इस तरह ध्यान किया। वे सभी लोगों से एकरूप थे। उन्होंने सबसे प्रेम किया। वे सबके दिलों में रहते हैं।” यह कितना खूबसूरत विचार है। ध्यान में हम मन की जटिलताओं से हृदय की सरलता की ओर आगे बढ़ते हैं और प्रेम ही वह सही सेतु है जो इस प्रगति का कारक बनता है। जब हममें से कई लोग जिनके हृदय गहन प्रेम से भरे हुए हैं, एक साथ ध्यान करते हैं तो एकता और शांति अपने आप आ जाती है। प्रेम की इस खूबसूरत दशा में हम मानवता की भावना को प्रतिदिन महसूस करते हैं।

मेरे आध्यात्मिक गुरु, शाहजहांपुर के श्री रामचंद्र जी ने जिन्हें प्रेम से बाबू जी महाराज कहा जाता था, मुझे सिखाया कि हार्टफुलनेस ध्यान के मार्ग में आध्यात्मिक ऊर्जा की यौगिक प्राणाहुति का एक विशेष और अनोखा तत्व ईश्वर के निकटतम समुन्नत आत्मा से प्रवाहित होता है। यह ऊर्जा या आध्यात्मिक प्राणाहुति कई स्तरों से और किसी भी माध्यम से संचारित हो सकती है। यहां तक कि योग वशिष्ठ में भी जो कि छठी से चौदहवीं शताब्दी के बीच के समय का प्राचीन पवित्र ग्रंथ है, यह कहा गया है कि एक आध्यात्मिक गुरु ने अपने शिष्य में स्पर्श, वाणी अथवा दृष्टि के माध्यम से आध्यात्मिक ऊर्जा संचारित की थी। भगवत गीता जो एक अन्य पवित्र ग्रंथ है उसमें श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन के साथ यही किया। सूफियों ने पवित्र संचार का अभ्यास किया और संभवतः कुछ यहूदी पंथ जैसे कि ऐसेनेस, जिनके साथ ईसा मसीह कुछ समय रहे थे, उनके पास भी इसी प्रकार की प्रक्रिया थी। ईसा मसीह को जॉन बैपटिस्ट के द्वारा बपतिज़्मा (बैपटाइज़) किया गया था। बाइबिल से लिया गया निम्न उद्धरण इसी संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है:

मैथ्यू 3:11-13, न्यू इंटरनेशनल वर्ज़न’: तुम्हारे पश्चाताप करने पर मैं तो जल से तुम्हारा बपतिज़्मा करता हूँपरंतु मेरे बाद आने वाला मुझसे भी ज्यादा शक्तिशाली हैजिसकी जूतियां भी उठाने के मैं काबिल नहीं। वह पवित्र प्राण एवं अग्नि से तुम्हारा बपतिज़्मा करेगा।

बाबूजी ने मुझे ईसाइयत और उस आध्यात्मिक ज्ञान के मध्य के अंतर्संबंध को समझने में मदद की। मैंने भारत में रहते हुए इसे समझा। उन्होंने ईसा मसीह की अत्यंत मूल्यवान शिक्षाओं के कारण हमेशा उनकी सराहना की। बाबूजी अक्सर कहते थे, “वे कितने दयालु ह्रदय थे! और उनका हृदय कितना विशाल था!” उन्होंने यह भी कहा कि सरमन ऑन द माउंट ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया। बाद के जीवन में मुझे बाइबिल को पुनः पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। प्रभु यीशु के शब्दों और इतने वर्षों से कई योगियों से जो मैंने सीखा था, जो उनकी कई पुस्तकों और विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभवों पर आधारित उनकी शिक्षाओं से ग्रहण किया था, उनमें पवित्र अंतर्संबंध को मैं देख सका।

दूसरी परंपराओं से सीखने की इच्छा रखने और उनके अंतर्संबंधों को ढूँढ़ने से हम वो प्राप्त कर सकते हैं जिसे प्रभु यीशु ने ईश्वर का साम्राज्य  कहा है। साथ ही उसकी शक्ति से हम अपनी आध्यात्मिक उन्नति को गति दे सकते हैं। वह साम्राज्य जिसे प्रभु यीशु ने हमारे भीतर बताया, वह निश्चित ही हममें से प्रत्येक के अंदर है और हमारी प्रतीक्षा कर रहा है। वह साम्राज्य  न केवल प्रतीक्षा कर रहा है बल्कि मेरा तो मानना है कि वह हमें ध्यान और प्रार्थना के अभ्यास के लिए इशारे से बुला भी रहा है। उसे हम समुन्नत आत्माओं से संचारित प्रेम और कृपा की प्राणाहुति से घनीभूत कर सकते हैं।

हालांकि अब मैं आपको एक व्यक्तिगत राज बताता हूँ: रात में सोने के ठीक पहले, जब मैं बैठकर, दिव्य के प्रति एक प्रार्थनापूर्ण ध्यान समर्पित करता हूँ और अपने हृदय को अपने अंदर किसी गहरे स्तर से जोड़ता हूँ, जो मेरे स्वयं के अस्तित्व की एक उच्चतर स्पंदनात्मक दशा है, तो मुझे महसूस होता है कि संपूर्ण मानवता एक साथ विकसित हो रही है। ईश्वर के द्वारा जिस साम्राज्य का वादा किया गया है, वह पहले से ही हमारी पहुँच में है। यह मुझे आभास दिलाता है कि हमारा ह्रदय ईश्वर का वही साम्राज्य है।