उत्त्तराखण्ड की गीत परांपरा को मात्रभाषा आंदोलन का प्रमुख आधार है

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देहरादून।उत्त्तराखण्ड की भाषाओं के पक्ष में धाद और रूम टू रीड के द्वारा आयोजित मातृभाषा सप्ताह का समापन उत्त्तराखण्ड की भोजन परंपरा के साथ धाद स्मृतिवन में  हुआ। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी डॉ राकेश भट्ट ने अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ लोक और भाषा का सुंदर समन्वय प्रस्तुत किया। साथ ही पहाड़ के भोजन का कार्यक्रम कल्यो भी आकर्षण  का केंद्र रहा। इस अवसर पर संस्कृतिक प्रस्तुति देते हुए डॉ राकेश भट्ट ने नंदा के गीत हमारा रिसासों में केकु दोष ह्वेगे और पांच साले कन्या कण स्वानी ह्वेगे प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि उत्त्तराखण्ड की गीत परांपरा को मात्रभाषा आंदोलन का प्रमुख आधार है।भाषाओं को बचाने के पक्ष में उत्त्तराखण्ड की गीत यात्रा की  विभिन्न शैलियो है विशेष रूप से छांछरी के माध्यम से किया जा सकता है। जो नंदा के गीतों के निमित्त गाई जाती है।

इन गीतों की मुख्य बात यह है कि इन गीतों में पारम्परिक बोलचाल की शैली का बहुधा प्रयोग किया जाता है। नंदा के विवाह के गीत, उसके कष्ट के गीत,उनके ससुराल और मायके केव गीत शामिल है।मात्रभाषा सप्ताह का विवरण देते हुए आयोजन प्रभारी शांति प्रकाश जिज्ञासु ने बताया कि धाद द्वारा उत्त्तराखण्ड की भाषा के सवाल को तीन दशक तक काम करने के पश्चात पिछले 12 वर्षों से इसे अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के आयोजन के साथ किया जा रहा है। इस वर्ष इसे एक सप्ताह तक विभिन्न स्तरों पर आयोजित किया गया। प्रदेश के प्रतिनिधि कवियों के कविता संकलन प्रकाशन के साथ प्रदेश के सभी जिलों के प्रतिनिधि प्राथमिक स्कूलों में विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ता  ने स्थानीय भाषा मे कहानियां सुनाई। ज्योति भट्ट अल्मोड़ा,बिंदिया रौतेला पिथौरागढ़,माधुरी रावत कोरद्वार,महावीर रनवालटा उत्तरकाशी,हेम पन्त रुद्रपुरशांति प्रकाश देहरादून,सुधांशु भट्ट  रुड़की,हिमांशु बृजवासी भीमताल,दीपक मैथानी टिहरी,रेखा विश्वकर्मा चंपावत,नीरज पंत बागेश्वर,कविता जोशी चमोली,मनोज बिष्ट रुद्रप्रयाग में कहानी वाचन किया। वहीं दैनिक ऑनलाइन आयोजन में गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी,लोकेश नवानि पद्मश्री माधुरी बड़थ्वाल पुष्पलता रावत महेशनन्द डॉ आशा रावत ने भागीदारी की जिसमे हजारों की संख्या में लोग शामिल रहे।

आयोजन की अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष लोकेष नवानि ने कहा कि भाषाये समाज को जोड़ती है संस्कृतिबद्ध करती है और वो समाज मे समरसता लाती है भाषाओं की इतिहास और वाचिक परम्परा रही है। उसे संरक्षित किया जाना समाज हित मे जरूरी है। भाषाओ ने समाज को गढ़ने में उसे एक आक्रार देने में मेहत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आयोजन का आकर्षण स्मृतिवन में प्रतिमाह के चौथे रविवार को आयोजित कल्यो फ़ूड फेस्टिवल रहा जिसमे पहाड़ी फ्यूज़न के साथ भोजन परोसा गया।जिसमे गैहत की पटोडी- मीठी टमाटर की चटनी के साथ( स्टार्टर) चणों क  साग, (तमिलनाडु का रसम) दगड़ ब्युखुनी भात मटर की भूंरी  रुट्टी भंगजीर की चटणी दगड़, झंगौरे की बिरयानी(अवधी  फ्यूजन के साथ, हरी मिर्च व  प्याज के रायते के साथ) कचुमर सलाद भेसण का प्रसाद (हलवा)परोसा गया।**कल्यो की संयोजिका मन्जु काला ने कहा कि कल्यो कम्यूनिटी लंच है जिसमे हर महीने लोग सामूहिक खर्चे के साथ पहाड़ के भोजन को बनाते और खाते है। उन्होंने बताया कि आयोजन सफल रहा है और इस्का विस्तार अब देश के विभिन्न स्थानों पर भी हो रहा है।*इस अवसर पर तन्मय ममगाई प्रो विनय आनन्द बौड़ाई, प्रेमलता बौड़ाई, डॉ जयन्त नवानि, वीरेंद्र खण्डूरी, अनुराधा,हिमांशु आहूजा, उत्तम सिंह रावत, देवेबदर कांडपाल सुशील पुरोहित बृज मोहन उनियाल किशन सिंह साकेत रावत ,कल्पना बहुगुणा, पंकज छतवाल, मोहित नेगी मौजूद थे।