नवरात्रों में सुरकण्डा माता मंदिर का विशेष महत्व है

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देहरादून: जहां प्रकृति ने पर्वतीय क्षेत्रों में खूबसूरती दी है वही इन अंचलों में माता रानी विराजमान हैं ताकि लोग इन खूबसूरत स्थानों में आ सके। आज हम बात कर रहे हैं सुरकण्डा माता की, जो टिहरी जनपद के जौनपुर ब्लाक के कद्दूखाल से महज 2.5 किमी पर हैं जहां पर श्रद्धालु मातारानी के दर्शन करने आते हैं वैसे तो यहां मॉ के दर्शन के लिए सालभर लोग आते रहते हैं लेकिन नवरात्रों में इस मंदिर का विशेष महत्व है यहां पर दूर दूर से अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रद्धालुओं आते हैं।
सुरकण्डा मंदिर पहुंचे पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं जहां प्रकृति की अनोखी छटा पहाड़ो में देखने को मिलती हैं वही इन हसीन वादियों में मातारानी ने अपना स्थान चुना हैं ताकि लोग यहां आकर इन खूबसूरत स्थानों का लुत्फ ले सके। पौराणिक मान्यता है कि राजा दक्ष प्रजापति की बेटी सती थी उनका विवाह शंकर भगवान से हुआ एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जहां पर सभी राजा महाराजाओं को बुलाया गया और उस यज्ञ में शिवजी को नही बुलाया। सती को जैसी यह सूचना मिली तो वह अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई अपने पति शिव को ना बुलाना उनका अपमान समझा। कहा जाता है माता सती ने यज्ञकुंड में अपनी आहुति दे दी जब यह सूचना शिव को मिली तो वे वहां पहुंच कर सती के मृत शरीर को हिमालय भ्रमण पर निकल गए और सभी भगवान शिव के इस रूप को देखकर चिंतन हो गए तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए जो टुकड़ा जहां पड़ा उस स्थान को सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता हैं कहा जाता हैं कि सिरकुट पर्वत पर सती का सिर पड़ा इस लिए इस स्थान का नाम सुरकण्डा पड़ा जहां पर सती माता की सिर की पूजा की जाती हैं यहां जो सच्चे मन से आते हैं उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
बी आर शर्मा प्रधानाचार्य राइका मरोडा कहते हैं इस मंदिर की अपनी विशेष महत्व हैं नवरात्रों में उत्तराखंड ही नही भारत के कई राज्यों से लोग मंदिर में माता सुरकण्डा के दर्शन करने आते हैं जो यहां पर ढोल बजता हैं वह एक अनोखी अनुभूति देती हैं और ढाई किमी चढ़ाई पैदल चलकर मंदिर में पहुचते ही सकून मिलता हैं वही फुलदास कहते हैं मैं यहां पर कई सालों से ढोल बजाकर मॉ की सेवा कर रहा हूं और आगे भी करता रहूंगा, गिरीश चंद्र कोठियाल व अन्य श्रद्धालुओं उपस्थित थे।