देहरादून- 20 अक्टूबर 2022- विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के 12वें दिन की शुरुआत ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के अंतर्गत ’विरासत साधना ट्रेजर हंट’ का आयोजन किया गया। जिसमे चार विद्यालय(दून इंटरनेशनल, हिल फाउंडेशन, के वी आई टी बी पी, ओग्रूव) के कुल 40 बच्चो ने प्रतिभाग लिया। ट्रेजर हंट के लिए 15 टीम तयार की गई , जिसमे 3 से 6 बच्चे हर एक टीम में शामिल किए गए । इस खेल में बच्चो को क्लूज की चिट्ठी ढूंढकर संचालक को सारी चिट्ठियां क्रमानुसार देनी थी । इसमें बच्चो को 6 क्लूज ढूंढने थे जो अलग अलग स्टॉल्स में छुपाए गए थे।
पहला क्लू टर्न लेफ्ट टुवर्ड्स स्नैक , दूसरा रेड एंड व्हाइट पेंटिंग ,तीसरा यूं नीड टू पुट ऑन योर हेड फॉर गुड नाईट स्लीप , चौथा दिस इस कलरफुल एंड वी यूज इट एवरी दिवाली , पांचवा प्रिंटिंग तकनीक ऑफ कच्छ आखरी फाइंड द पॉटर था। जिसे सबसे पहले दून इंटरनेशनल ग्रुप 1 के बच्चे (अनुष्का सिंह, अनुष्का रावत , श्रेया नौटियाल )ने ढूंढा और पहला स्थान हासिल किया। उसके बाद दूसरा स्थान भी दून इंटरनेशनल के ग्रुप 3 के (क्षितिज मंगल , खुशी कैंतुरा , अश्रेया चंद,अदम्य गुप्ता ,प्रेस्था मेहरा ) के नाम हुआ। ये खेल सरगम, शुषांशु एवं सना द्वारा संचालित एवम तैयार किया गया।
सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं ब्रम्ह कमल सांस्कृतिक कला संगम देहरादून के मनमोहक लोकनृत्य की प्रस्तुतियां हुई जिसकी शुरुवात उन्होंने गणेश की आराधना (दैन्या होया खोली का गणेशा) से की फिर उसके बाद उन्होंने नंदा देवी का सुंदर प्रदर्शन किया। अगली प्रस्तुति में उन्होंने गढ़वाल के थडिया चोला की दी, उसके बाद उन्होंने कुमाऊं के छपेली का लोकनृत्य का प्रदर्शन किया। जोनसार का हारूल और तांदी देखने का भी दर्शकों को अवसर मिला। अंत में उन्होंने तीनों लोकनृत्य गढ़वाली, कुमाऊं एवं जौनसार’ का विलय कर प्रस्तुति का समापन किया। छपेली उत्तराखंड में किया जाने वाला एक पारंपरिक नृत्य है, यह नृत्य रूप स्थानीय उत्तराखंड जनजाति की संस्कृति पर आधारित है क्योंकि प्रेमी आमतौर पर इस नृत्य का प्रदर्शन करते हैं।
स्थानीय जनजाति के रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार, किंवदंती के अनुसार, जो जोड़े एक साथ छपेली नृत्य करते हैं, वे हाथ में रंग-बिरंगे कपड़ों और वाद्ययंत्रों के साथ नृत्य करते हुए अपने रिश्ते को मजबूत करते हैं। तांडी“ उत्तराखंड का एक लोकप्रिय नृत्य है। इस नृत्य में सभी लोग एक दूसरे का हाथ पकड़कर एक श्रृंखला में नृत्य करते हैं। टांडी नर्तक आमतौर पर पुरुष होते हैं और वे एक सीधी रेखा में खड़े होते हैं और रंगीन वेशभूषा में नृत्य करते हैं। हारूल उत्तराखण्ड के जौनसार बावर के जोनसर जनजाति का इक पारंपरिक लोक नृत्य है जिसका नृत्य का विषय पांडवो की कहानी पर आधारित है। थाडिया चोला नृत्य गढ़वाल की विवाहित लड़कियों द्वारा किया जाता है जो अपने घर अपने विवाह के बाद पहली बार लौटती है , और अपने आंगन में नाचती एवम गाती है।
इस प्रस्तुति में राजीव चौहान ( हेड) रवि व्यास व्यास, अंजु बिष्ट ,शिवनी सिंह (गायकी) ,स्वाति जग्गी ,आयुषी रमोला,संगीता चौहान ,ज्योति रावत ,संतोष भट्ट , अंकित ,रविन्द्र शाह , नील शाह ( नृत्य) सुरेंद्र कोहली ,संजय नौटियाल, महेश , सौरभ उपाध्याय, ( संगीत) ने मिलकर इस प्रस्तुति को सफल बनाया ।सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में अयान सेनगुप्ता द्वारा सितार वादन कि प्रस्तुति दी गई। जिसमे उन्होंने कार्यक्रम की शुरुवात राग जयजवंती से की। इसके सुंदर प्रतिपादन ने श्रोताओं को मोहित कर दिया। उसके बाद उन्होंने राग हेमंत में प्रस्तुति दी जो की बंगाल लोक का पश्चात भारतीय पारंपरिक संगीत के संयोजन का अनुसरण किया है।
अयान सेनगुप्ता प्रसिद्ध संगीत घराना सेनिया मैहर के शिष्य है एवं पं पार्थ चटर्जी और पं अजय चक्रवर्ती के संरक्षण में है। वे एक आईटीसी संगीत अनुसंधान अकादमी के संगीतकार विद्वान हैं, अयान आठ साल की उम्र से संगीत का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने अपने दादा सुबिमल सेनगुप्ता से सीखना शुरू किया और पंडित मणिलाल नाग और पंडित कुशल दास से भी शिक्षा लिया। अयान ने भारत, यूके और बांग्लादेश में विभिन्न संगीत समारोहों में भी प्रदर्शन किया है। वह एक टेलीविज़न शो का भी हिस्सा रहे हैं, जहाँ वह सितारवादक पूरबयान चटर्जी के एक बैंड का हिस्सा थे। वे एक संवेदनशील, गंभीर और मेहनती संगीतकार हैं अयान में जबरदस्त क्षमता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के आखिरी प्रस्तुतियों में गांधार देशपांडे द्वारा शास्त्रीय गायन कि प्रस्तुति दी गई। जिसमें गांधार जी ने अपनी प्रस्तुति की शुरुवात ग्वालियर घराने से विलंबित तिलवाड़े में एक पारंपरिक बंदिश में राग बिहग के ( इ मां घन घन रे) से की । उसके बाद उन्होंने दोबारा ग्वालियर से द्रुत ताल और तराना की एक पारंपरिक बंदिश प्रस्तुत की । अगली प्रस्तुति विलंबित रूपक में राग बागेश्वरी (कौन गत भाई) से प्रस्तुति का समापन किया। उनकी संगत में शुभ महाराज (तबला, जाकिर ढोलपूरी (हारमोनियम ) नजर आए।
गांधार देशपांडे प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पं.डॉ.राम देशपांडे के पुत्र और शिष्य हैं। गांधार ने शास्त्रीय गायन की प्राथमिक शिक्षा अपनी मां श्रीमती अर्चना देशपांडे से ली है। वर्तमान में, वे डॉ. राम देशपांडेजी के साथ ग्वालियर, जयपुर, और आगरा घराना गायकी “गुरुशिश परम्परा“ द्वारा, पिछले 17 वर्षों से सक्षम मागदर्शन में है ।
गांधार ने संगीत में कई पुरस्कार जीते हैं उन्होंने पिछले 6 वर्षों में ’राष्ट्रीय स्तर के युवा महोत्सव’ सहित पिछले दो वर्षों में 8 स्वर्ण पदक जीते हैं। उन्हें कई मौकों पर उनकी प्रतिभा के लिए सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें “हृदयश पुरस्कार, “चतुरंगा पुरस्कार“,“पीटी विष्णु दिगंबर पालुस्कर पुरस्कार”, “यंग म्यूज़िशियन अवार्ड” खैरागड़, “पं. निवृतिबुआ सरनाइक पुरस्कार” पुणे शामिल है।
2017 में गांधार ने “मुंबई नाइट“ एल्बम के लिए ’जस्टिन ट्रेसी’ अमेरिकी पश्चिमी संगीतकार के साथ सहयोग किया, जिसे प्रतिष्ठित “ग्रैमी अवार्ड्स“ के लिए एक प्रतियोगी के रूप में चुना गया था। उन्होंने विभिन्न रचनाओं में पूरे भारत एवं विदेशों में प्रदर्शन किया है जिसमें “पंचम निषाद सुर सागर श्रृंखला“मुंबई, “उस्ताद अल्लाह रक्खा जयंती समारोह“ पुणे, “काला घोड़ा महोत्सव“मुंबई, “चतुरंगा महोत्सव“, “पं. जितेंद्र अभिषेकी महोत्सव“ पुणे, “पी.एल. देशपांडे महोत्सव“ मुंबई और भारत, अमेरिका, कनाडा और थाईलैंड में कई अन्य स्थान। उन्होंने डॉक्युमेंट्री फिल्म “गाना योगी“ में बचपन के पं. डी.वी. पलुस्कर की भूमिका निभाई जिसे डॉ अंजलि कीर्तने द्वारा निर्देशित किया गया है एवं इस समय गांधार अपने रियाज पर ध्यान दे रहे हैं।
विरासत में देहरादूनवासी जमकर कर रहे हैं दिवाली की खरीददारी, वही देहरादून के लोग शाम ढलते ही विरासत के प्रांगण में अपने पूरे परिवार के साथ आकर जमकर दिवाली की खरीदारी करने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के अन्य राज्य से आए हुए खाने-पीने के स्टाल पर व्यंजन एवं पकवान का आनंद ले रहे हैं। विरासत में मौजूद अन्य राज्यों के हथकरघा एवं हस्तशिल्प के उत्पादन बहुत लोकप्रिय है एवं देहरादून के लोग उसे जमकर खरीद भी रहे हैं इसी के साथ कई ऐसे स्टॉल्स भी हैं जहां पर मिट्टी के दीए के साथ-साथ घर की सजावट के लिए बहुत से सामान मौजूद हैं। क्लेमन टाउन निवासी डॉ दिव्या नेगी धई जो एक विरासत की विजिटर हैं बताती हैं कि वे कई बरसों से विरासत में लगे हुए स्टॉल से पूरे साल की खरीददारी करती है।
वें कहती हैं कि विरासत का आयोजन साल भर में बस एक बार होता है परंतु कुछ ऐसी हमारे दैनिक चीजें होती है जिसकी आवश्यकता हमें पूरे साल भर रहती है। वह सब मैं 15 दिन के इस आयोजन में कई बार आकर धीरे-धीरे ले जाती हूं। मुझे जो सबसे ज्यादा पसंद है उसमें हथकरघा एवं हस्तशिल्प के बने हुए उत्पाद के साथ-साथ घर के सजावट में इस्तेमाल होने वाले कुछ अन्य वस्तुएं जो आपको सिर्फ विरासत में मिलती है । जैसे आप देख सकते हैं आंध्रप्रदेश कर्नाटक, बिहार से आए हुए हैं स्टॉल जहां पर आप को बिल्कुल अनोखे वस्तुएं मिल जाएगी जिसे आप घर में इस्तेमाल कर सकते हैं और दैनिक जीवन में यूज कर सकते हैं। इसी प्रकार आप देख सकते हैं कि राजस्थान के पोखरण से आए हुए कुछ स्टॉल हैं जहां पर आपको विभिन्न प्रकार के भगवान की मूर्तियां एवं कलाकृतियां मिल जाएगी साथ ही दीपावली एवं अन्य त्योहारों में इस्तेमाल होने वाले दीप के साथ-साथ मिट्टी के अनोखे बर्तन भी मिल जाती हैं जो हमें देहरादून के बाजार में संभवत उपलब्ध नहीं हो पाती है।
दिनांक-21 अक्टूबर 2022 के सांस्कृतिक कार्यक्रम में शाम 7ः00 बजे एस आकाश जी के द्वारा बांसुरी वादन प्रस्तुत किया जाएगा एवं शाम 8ः00 बजे वडाली ब्रदर्स द्वारा सूफी गीत कि प्रस्तुतियां होंगी। 09 अक्टूबर से 23 अक्टूबर 2022 तक चलने वाला यह फेस्टिवल लोगों के लिए एक ऐसा मंच है जहां वे शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के जाने-माने उस्तादों द्वारा कला, संस्कृति और संगीत का बेहद करीब से अनुभव कर सकते हैं। इस फेस्टिवल में परफॉर्म करने के लिये नामचीन कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। इस फेस्टिवल में एक क्राफ्ट्स विलेज, क्विज़ीन स्टॉल्स, एक आर्ट फेयर, फोक म्यूजिक, बॉलीवुड-स्टाइल परफॉर्मेंसेस, हेरिटेज वॉक्स, आदि होंगे। यह फेस्टिवल देश भर के लोगों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और उसके महत्व के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का मौका देता है। फेस्टिवल का हर पहलू, जैसे कि आर्ट एक्जिबिशन, म्यूजिकल्स, फूड और हेरिटेज वॉक भारतीय धरोहर से जुड़े पारंपरिक मूल्यों को दर्शाता है।
रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृत्य, शिल्प, पेंटिंग, मूर्तिकला, रंगमंच, कहानी सुनाना, पारंपरिक व्यंजन, आदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुणः पहचाना जाने लगा है। विरासत 2022 आपको मंत्रमुग्ध करने और एक अविस्मरणीय संगीत और सांस्कृतिक यात्रा पर फिर से ले जाने का वादा करता है।