Articles Archives - Involvement https://involvement.co.in/category/articles/ Involvement News Fri, 28 Jul 2023 09:10:35 +0000 en-US hourly 1 https://involvement.co.in/wp-content/uploads/2021/08/cropped-logo-involvement-32x32.png Articles Archives - Involvement https://involvement.co.in/category/articles/ 32 32 पृथ्वी के सृजन की रक्षा करते हुए हम आत्मा की उन्नति का पोषण करते हैं – ‘दाजी’ कमलेश पटेल https://involvement.co.in/%e0%a4%aa%e0%a5%83%e0%a4%a5%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a5%83%e0%a4%9c%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a4%b0/ Fri, 28 Jul 2023 09:10:33 +0000 https://involvement.co.in/?p=13097 प्रकृति संरक्षण दिवस प्रकृति के सौन्दर्य और उसके महत्व का उत्सव मनाने का दिन है। यह हमारे प्राकृतिक संसार के सामने खड़ी चुनौतियों के प्रति जागरुकता बढ़ाने का भी दिन है। दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष जिसका हमारे पूर्वज बहुत सम्मान करते थे वह है हमारे बाहरी पर्यावरण और हमारे आंतरिक स्व के बीच परस्पर जुड़ाव। जिस प्रकार हम अपने आस-पास फैली प्राकृतिक दुनिया की रक्षा और संरक्षण के लिए प्रयास करते हैं, उसी प्रकार हमारे आंतरिक पर्यावरण के महत्व को पहचाना भी उतना ही आवश्यक है, जो अकेले ही बाहरी पर्यावरण…

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प्रकृति संरक्षण दिवस प्रकृति के सौन्दर्य और उसके महत्व का उत्सव मनाने का दिन है। यह हमारे प्राकृतिक संसार के सामने खड़ी चुनौतियों के प्रति जागरुकता बढ़ाने का भी दिन है। दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष जिसका हमारे पूर्वज बहुत सम्मान करते थे वह है हमारे बाहरी पर्यावरण और हमारे आंतरिक स्व के बीच परस्पर जुड़ाव। जिस प्रकार हम अपने आस-पास फैली प्राकृतिक दुनिया की रक्षा और संरक्षण के लिए प्रयास करते हैं, उसी प्रकार हमारे आंतरिक पर्यावरण के महत्व को पहचाना भी उतना ही आवश्यक है, जो अकेले ही बाहरी पर्यावरण की रक्षा, पोषण तथा संरक्षण कर सकता है। लेकिन बीते दिनों में पूर्वजों ने पर्यावरण का संरक्षण भला कैसे किया होगा?

प्राचीन और समकालीन परिपेक्ष्य में प्रकृति का सम्मान:

पूरे इतिहास में, विभिन्न संस्कृतियों ने प्राकृतिक दुनिया के हर पहलू में दैवीय उपस्थिति को पहचानते हुए, प्रकृति के तत्वों के प्रति गहरी श्रद्धा रखी है। हिंदुओं का मानना था कि प्रकृति के प्रत्येक तत्व को सर्वोच्च दिव्यता की अभिव्यक्ति के रूप में पूजा जाता है। वेदों, उपनिषदों और पुराणों के पवित्र ग्रंथ, वर्षा देवताओं, वायु देवताओं और पेड़ों आदि के प्रति गहरी श्रद्धा से भरे हुए हैं। दिव्य और प्राकृतिक संसार के बीच आध्यात्मिक संबंध अविभाज्य है, जो एक ही परम् वास्तविकता के दो पहलू हैं। सूफ़ियों की शिक्षाएं प्राकृतिक दुनिया का सम्मान और संरक्षण करने पर भी बहुत ज़ोर देती हैं। हृदय-आधारित ध्यान का उपयोग करते हुए सूफ़ी परम्पराओं में पृथ्वी, अंतरिक्ष, अग्नि, जल तथा वायु जैसे तत्वों को गहरी श्रद्धा के साथ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जैन तीर्थंकरों को कुछ देशी पेड़ों के नीचे ध्यान करने के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ था।

विलियम वर्ड्सवर्थ, जिन्हें अक्सर “प्रकृति के कवि” के रूप में जाना जाता है, का मानना था कि प्राकृतिक दुनिया की सुंदरता व्यक्तियों को आपसी प्रेम, करूणा और सार्वभौमिक भाईचारे की भावना की ओर ले जा सकती है। शैली ने, “प्रकृति के उपासक” के रूप में अपनी स्वयं-घोषित भूमिका में, मानवता को वास्तविक प्रसन्नता और पूर्णता की ओर मार्गदर्शन करने की प्रकृति की क्षमता को पहचाना।

विभिन्न संस्कृतियों और इतिहास के काल-खण्डों में प्रकृति के प्रति स्थाई श्रद्धा हमें प्राकृतिक संसार के साथ हमारे गहन आध्यात्मिक संबंध की याद दिलाती है। इस संबंध को अपनाने से हमारे पर्यावरण की गहरी सराहना हो सकती है; और हमें आंतरिक शांति, दयालुता और सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व के लिए प्रकृति के साथ गहरा संबंध बनाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।

21वीं सदी में प्रवेश करें और प्रकृति के संरक्षण का संदर्भ ग्रहण करें:

पशुओं और पेड़ों में प्रकृति की रक्षा करने वाली मानवीय भावनाओं का अभाव है। प्रकृति को बचाने के लिए कार्य करने में असफल होना, उसे हस्ताक्षेप करने और संतुलन लाने के लिए आमंत्रित करता है। मेरे आध्यात्मिक गुरू, शाहजहाँपुर के श्री राम चन्द्र ने ज़ोर दिया: “सुधर जाओ या समाप्त हो जाओ।” चरित्र, व्यवहार और अखंडता का व्यक्तिगत परिवर्तन हमारे भीतर शांति का विस्तार करता है, वैश्विक सद्भाव को बढ़ावा देता है।

आध्यात्मिकता और ध्यान का अभ्यास आंतरिक शुद्धि और परिवर्तन के लिए सबसे प्रभावी साधन है।

कार्बन डाइ-ऑक्साइतड और ऑक्सीजन के पारिस्थितिक आदान-प्रदान के अलावा, पेड़ हमारे मानसिक कंपन के साथ भी गहरा संबंध साझा करते हैं। उनकी शांत और शांतिपूर्ण ऊर्जा चिंता और घबराहट को कम कर सकती है। आध्यात्मिक विज्ञान द्वारा समर्थित, हार्टफुलनैस ध्यान के आदिगुरू, फतेहगढ़ के श्री राम चन्द्र ने पेड़ों को प्राणाहुति की आध्यात्मिक ऊर्जा के वाहक के रुप में मान्यता दी।

हालाँकि हम एक दिन इस ग्रह को छोड़ सकते हैं, प्रकृति और हमारी चेतना के बीच स्थायी बंधन बना रहता है। पेड़ों से निकलने वाली आध्यात्मिक ऊर्जा हमारी प्रजाति के आध्यात्मिक अस्तित्व की रक्षा करती है, प्रकृति के साथ एक शाश्वत प्रेम कथा को कायम रखती है।

हृदय-केंद्रित ध्यान और जागरूकता के माध्यम से स्थायी समाधान:

ध्यान एक परिवर्तनकारी उपकरण है जो संरक्षण प्रयासों के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। ध्यान पारिस्थितिक जागरूकता को बढ़ावा देने, पारिस्थितिक तंत्र के नाजुक संतुलन और सभी जीवित प्राणियों की परस्पर निर्भरता को पहचानने में मदद करता है। ध्यान की शांति में, वे सीमाएँ जो हमें प्रकृति से अलग करती हैं, समाप्त होने लगती हैं। हम पर्यावरण के साथ एकता की गहरी भावना का अनुभव करते हैं, यह महसूस करते हुए कि हमारी भलाई आंतरिक रूप से पृथ्वी के स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है। यह हमें हमारे पारिस्थितिक पदचिन्ह (environmental footprint) को कम करने, न केवल साथी मनुष्यों के प्रति बल्कि सभी जीवित प्राणियों के प्रति सहानुभूति और करूणा का पोषण करने में मदद करता है, एक हृदय-केंद्रित ध्यान का अभ्यास हमें आवासों की रक्षा करने और मनुष्यों तथा वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने का दृढ़ संकल्प देता है।

पृथ्वी की रक्षा करें, आत्मा को उन्नत करें:

प्रकृति के आलिंगन में, हम उपचार और नवीनीकरण पाते हैं। प्रकृति का संरक्षण केवल मात्र कर्तव्य नहीं, बल्कि एक पवित्र विशेषाधिकार है। संरक्षण का प्रत्येक कार्य सृष्टिकर्ता और उसकी रचना के प्रति श्रद्धा का कार्य है। जैसे ही हम पृथ्वी की रचना की रक्षा करते हैं, हम अपनी आत्मा की उन्नति का पोषण करते हैं। प्रकृति के संरक्षण में, आध्यात्मिकता अपनी प्रामाणिक अभिव्यक्ति पाती है। इस विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर, आइए हम मानवता और प्राकृतिक संसार के बीच गहन आध्यात्मिक संबंध में एकजुट हों। प्राचीन परम्पराओं और समकालीन हृदय-केंद्रित चिंतन प्रथाओं का ज्ञान हमें उस आंतरिक सद्भाव की याद दिलाता है जो तब मौजूद होता है जब हम अपने पर्यावरण का सम्मान करते हैं और उसकी रक्षा करते हैं।

हार्टफुलनेस  के बारे में

हार्टफुलनेस ध्यान प्रथाओं और जीवनशैली में बदलाव का एक सरल संग्रह  प्रदान करता है, जिसे पहली बार बीसवीं शताब्दी में  विकसित किया गया था और 1945 में श्री रामचंद्र मिशन के माध्यम से शिक्षण में औपचारिक रूप दिया गया था। ये अभ्यास योग का एक आधुनिक रूप है जिसे संतोष, आंतरिक शांति, करुणा, साहस और विचारों की स्पष्टता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। हार्टफुलनेस अभ्यास  जीवन के सभी क्षेत्रों, संस्कृतियों, धार्मिक विश्वासों और आर्थिक स्थितियों से पंद्रह वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त हैं। 160 देशों में कई हजारों प्रमाणित स्वयंसेवक प्रशिक्षकों और चिकित्सकों द्वारा 5,000 से अधिक हार्टफुलनेस केंद्रों का समर्थन किया जाता है।

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देश के ग्रामीण क्षेत्र की उन्नति का अग्रदूि नाबार्ड https://involvement.co.in/%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a5%80%e0%a4%a3-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a5%87%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%80/ Thu, 13 Jul 2023 09:47:47 +0000 https://involvement.co.in/?p=12913 आयोजना प्रक्रिया के आरंभ से ही भारत सरकार के सामने यह बात स्पष्ट थी क्रक ग्रामीण अथथव्यवस्था को गक्रत देने में संस्थागत ऋण अत्यंत महत्वपूणथ है। अत: भारत सरकार और भारतीय ररज़वथ बैंक ने इस महत्वपूणथ पहलू की गहन पड़ताल के क्रलए कृ क्रि और ग्रामीण क्रवकास के क्रलए संस्थागत ऋण की व्यवस्थाओं की समीक्षा हेतु योजना आयोग के पूवथ सदस्य श्री बी क्रिवरामन की अध्यक्षता में 30 मार्थ 1979 को एक सक्रमक्रत (CRAFICARD) का गठन क्रकया। सक्रमक्रत ने28 नवंबर 1979 को प्रस्तुत अन्तररम ररपोर्थ में रेखांक्रकत क्रकया क्रक ग्रामीण…

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आयोजना प्रक्रिया के आरंभ से ही भारत सरकार के सामने यह बात स्पष्ट थी क्रक ग्रामीण अथथव्यवस्था को गक्रत देने में संस्थागत ऋण अत्यंत महत्वपूणथ है। अत: भारत सरकार और भारतीय ररज़वथ बैंक ने इस महत्वपूणथ पहलू की गहन पड़ताल के क्रलए कृ क्रि और ग्रामीण क्रवकास के क्रलए संस्थागत ऋण की व्यवस्थाओं की समीक्षा हेतु योजना आयोग के पूवथ सदस्य श्री बी क्रिवरामन की अध्यक्षता में 30 मार्थ 1979 को एक सक्रमक्रत (CRAFICARD) का गठन क्रकया। सक्रमक्रत ने28 नवंबर 1979 को प्रस्तुत अन्तररम ररपोर्थ में रेखांक्रकत क्रकया क्रक ग्रामीण क्रवकास से जुड़े ऋण संबंधी मुद्ों पर अक्रवभाक्रजत रूप से ध्यान देने, वांक्रित क्रदिा में ले जाने और उन पर बल देने के क्रलए एक नए संस्थागत ढााँर्ेकी आवश्यकता है। सक्रमक्रत की अनुिंसा थी क्रक एक क्रवकास क्रवत्तीय संस्था गक्रठत की जाए जो इन आकांक्षाओं की पूक्रतथ कर सके और संसद ने 1981 के अक्रधक्रनयम 61 के माध्यम सेराष्टरीय कृ क्रि और ग्रामीण क्रवकास बैंक (नाबार्थ) के गठन का अनुमोदन क्रकया। भारतीय ररज़वथ बैंक के कृ क्रि ऋण कायों और तत्कालीन कृ क्रि पुनक्रवथत्त और क्रवकास क्रनगम (एआरर्ीसी) के पुनक्रवथत्त कायों को अंतररत कर नाबार्थ 12 जुलाई 1982 को अस्तस्तत्व में आया। 100 करोड़ की आरंक्रभक पूाँजी से स्थाक्रपत इस बैंक की र्ुकता पूाँजी 31 मार्थ 2023 को 17,080 करोड़ हो गई।

भारत सरकार और भारतीय ररज़वथ बैंक के बीर् िेयर पूाँजी की क्रहस्सेदारी में संिोधन के बाद आज नाबार्थ भारत सरकार के पूणथ स्वाक्रमत्व में है। नाबार्थ इस विथ अपना 42वां स्थापना क्रदवस मना रहा है। अपने नाम के अनुरूप, नाबार्थ अपनी स्थापना से ही भारत के कृ क्रि और ग्रामीण क्रवकास के क्रलए समक्रपथत रहा। नाबार्थ ने अपने क्रहतधारकों के साथ सहयोग क्रकया, बैंक्रकं ग प्रणाली के साथ तालमेल क्रबठाया, क्रवक्रभन्न सरकारी क्रनकायोंको अपने साथ क्रलया और अक्रत कमथठता से ऋण और सहकाररता (भारतीय ररज़वथ बैंक के सहयोग से) के एक ग्रामीण पररवेि का क्रनमाथण क्रकया। नाबार्थ ने क्रवत्तमान बढाने के क्रलए असंख् य प्रयास क्रकए, क्रजनमें से कु ि इस प्रकार हैं- ररयायती ऋण प्रदान करना, बुक्रनयादी स् तर की संस्थाएं गक्रठत करना (क्रवकास वालंक्रर्यर वाक्रहनी, स् वयंसहायता समूह, संयुक्त देयता समूह , क्रकसान-उत् पादक संगठन), कस् र्माइज़्र् क्रवत्तीय उत् पादों (जैसे क्रकसान िे क्रर्र् कार्थ) के क्रर्ज़ाइन तैयार करना, ग्रामीण आधारभूत संरर्नाओं का क्रनमाथण, वार्रिेर्ों का क्रवकास और जनजातीय आजीक्रवकाओं को संरक्रक्षत करना और 2 उनमें क्रवक्रवधता लाना, क्लाइमेर् र्ेंज के दुष्प्रभावों से बर्ाने में भूक्रमका क्रनभाना, गैर-कृ क्रि क्षेत्र में रोजगार तथा आजीक्रवका सृजन हेतु कायथिम आयोक्रजत करना आक्रद।

नाबार्थमुख्य रूप से कृ क्रि और अन्य संबद्ध गक्रतक्रवक्रधयों, सूक्ष्म/लघु/मध्यम उद्यमों क्रजसमें कु र्ीर और ग्रामोद्योग, हथकरघा, हस्तक्रिल्प, अन्य ग्रामीण क्रिल्प और अन्य संबद्ध आक्रथथक गक्रतक्रवक्रधयों की समृस्तद्ध सुक्रनक्रित करने के क्रलए ऋण और उसके क्रवक्रनयक्रमत करने का कायथ करता है। देि के िीिथ क्रवकास
क्रवत्तीय संस्थान के रूप में, नाबार्थ की पहलों का उद्ेश्य क्रवक्रिष्ट लक्ष्योन्मुख के माध्यम से एक सिक्त और आक्रथथक रूप से समावेिी ग्रामीण भारत का क्रनमाथण करना है। ग्रामीण अथथव्यवस्था के लगभग हर पहलू को िू ने वाले नाबार्थ के कायों को मोर्े तौर पर क्रवत्तीय, क्रवकासात्मक और पयथवेक्षण, में वगीकृ त क्रकया जा सकता है। ग्रामीण बुक्रनयादी ढांर्ेके क्रलए क्रवत्तीय सहायता एवं क्रवक्रभन्न क्रवत्तीय संस्थाओं को कृ क्रि एवं सम्बन्ध गक्रतक्रवक्रधयोंके क्रलए के क्रलए पुनक्रवथत्त सहायता प्रदान करने से लेकर, क्रजला ऋण योजना/ राज्य ऋण योजना तैयार करनेऔर इन योजनाओं के अंतगथत लक्ष्यों को प्राप्त करने के क्रलए बैंकों को मागथदिथन और प्रेरणा, पयथवेक्षण के द्वारा सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) में बेहतर बैंक्रकं ग पद्धक्रतयां क्रवकक्रसत करना और उन्हें सीबीएस प्लेर्फॉमथ पर लाना और उसके उपयोग को बढावा देना, नई क्रवकास योजनाओं को क्रर्जाइन करना, कृ क्रि और ग्रामीण क्षेत्र में क्रवत्तीय और गैर-क्रवत्तीय नवार्ार को क्रवकक्रसत करना, प्रायोक्रगक आधार पर संर्ालन करना और मुख्यधारा में लाना (जैसा क्रक के सीसी, एसएर्जी, जेएलजी, वार्रिेर्, एफपीओ, क्रवत्तीय समावेिन ,आक्रद के मामले में क्रकया गया है) और भारत सरकार की योजनाओं का कायाथन्वयन, राज्य सरकारों और कें द्र सरकार को नीक्रतगत सुझाव, हस्तक्रिल्प कारीगरों को प्रक्रिक्षण व क्रवपणन मंर् की सुक्रवधाएं प्रदान करना और मक्रहलाओं को क्रर्क्रजर्ल क्रवत्तीय समावेि से सिक्त बनाना िाक्रमल हैं । मुम्बई में अपने प्रधान कायाथलय के साथ नाबार्थ की 31 क्षेत्रीय कायाथलयों, 355 क्रजला कायाथलयों, 29 क्लस्टर कायाथलयों एवं 7 सस्तिक्रर्यरी के साथ अस्तखल भारतीय उपस्तस्थक्रत है। नाबार्थ की लखनऊ, कोलकाता और मंगलुरु में स्तस्थत प्रक्रतष्ठान नाबार्थ के कमथर्ाररयों के अलावा, देि के अन्य ग्रामीण क्रवत्तीय संस्थानों की प्रक्रिक्षण आवश्यकताओं को भी पूरा करते हैं।

विथ 2022-23 के दौरान, नाबार्थ उत्तराखंर् क्षेत्रीय कायाथलय द्वारा उत्तराखंर् राज्य को 3527.92 करोड़ की क्रवत्तीय सहायता प्रदान की गई क्रजसमें 3517.64 करोड़ का ऋण तथा 10.28 करोड़ का अनुदान िाक्रमल है जो क्रपिले विथ की क्रवत्तीय सहायता2768.14 करोड़ से 27.45% अक्रधक है। क्रवत्तीय उपलस्ति
का मुख्य क्रहस्सा 1981.97 करोड़ क्रवक्रभन्न बैंकों को पुनक्रवथत्त क्रदया गया क्रजसमें1012.90 करोड़ रुपए 3 अल्पकालीन पुनक्रवथत्त, 969.07 करोड़ दीघथकालीन पुनक्रवथत्त एवं 916.00 करोड़ राज्य सहकारी बैंक एवं क्रजला सहकारी बैंकों को सीधी पुनक्रवथत्त सहायता के रूप में प्रदान की गई। आरआईर्ीएफ के तहत राज्य सरकार को 616.35 करोड़ की सहायता प्रदान की गई जो क्रपिले विथ की तुलना में लगभग 5% अक्रधक है। साथ ही विथ 2022-23 के दौरान आरआईर्ीएफ के अंतगथत 777.71 करोड़ के 298 नई पररयोजनाएाँ स्वीकृ त की गई जो क्रपिले विथ 531.58 करोड़ की तुलना में 46.30% अक्रधक है। विथ के दौरान स्वीकृ त नई पररयोजनाओं में मुख्यतः राज्य में 18000 क्लस्टर आधाररत पॉलीहाउस स्थाक्रपत करने के क्रलए 280 करोड़ की पररयोजना को स्वीकृ क्रत क्रमलना है क्रजसमें 80% अंि नाबार्थ का होगा।

इन पॉलीहाउस के बनने के उपरांत, लगभग 1.0 लाख लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त होगा। अब तक, RIDF -XXVIII (2022-23) तक, राज्य सरकार को
10808.00 करोड़ का ऋण स्वीकृ त क्रकया गया है तथा 9123.34 करोड़ का ऋण क्रवतररत क्रकया है। आरआईर्ीएफ के अंतगथत राज्य सरकार को स्वीकृ त पररयोजनाओं के धरातल पर आने से 2.05 लाख हेक्टेयर क्रसंर्ाई की सुक्रवधा, 14,766 क्रक.मी. सड़क नेर्वकथ, 27,307 मीर्र पुल, 23.77 लाख ग्रामीण जनसंख्या के क्रलए पेयजल पररयोजना एवं 241 स्कू ल/ आईर्ीआई क्रवकक्रसत की गई हैं। इन योजनाओं से ग्रामीण जनसंख्या की िे क्रर्र् अविोिण क्षमता (credit absorption capacity) क्रनक्रित रूप से बढी है। इसके अक्रतररक्त उत्तराखंर् पावर र्र ांसक्रमिन कापोरेिन क्रल. (PTCUL) को पूवथ में स्वीकृ त 02 प्रोजेक्टस के अंतगथत विथ 2022-23 के दौरान 3.32 करोड़ का ऋण NABARD Infrastructure Development Assistance (NIDA) के अंतगथत जारी क्रकया गया एवं पावर र्र ांसक्रमिन से संबस्तन्धत326.04 करोड़ रुपए के 14 नई पररयोजनाएाँभी स्वीकृ क्रत हेतु क्रवर्ाराधीन हैं।


उत्तराखंर् क्रविेि रूप से पहाड़ी इलाकों में जहां क्रकसानों की औसत भूक्रम औसत से कम और खंक्रर्त है, कृ क्रि और संबद्ध गक्रतक्रवक्रधयों को पुनजीक्रवत करने और आजीक्रवका बढाने के क्रलए एफ़पीओ एक साधन हो सकता है। 31 मार्थ 2023 तक, नाबार्थ ने राज्य में 133 एफपीओ को क्रवतीय समथथन क्रदया है। विथ 2022-23 के दौरान नाबार्थ उत्तराखंर् क्षेत्रीय कायाथलय ने बैंकों/ एनजीओ / प्रोड्यूसर संस्थानों/ कृ क्रि क्रवज्ञान के न्द्ों / क्रवश्वक्रवद्यालयों, इत्याक्रद को प्रोमोिनल पहलों यथा क्रवत्तीय समावेिन फ़ं र्, एसएर्जी/ जेएलजी के प्रोन्नक्रत हेतु, वॉर्र िेर् क्रवकास क्रनक्रध, आक्रदवासी क्रवकास क्रनक्रध, ग्राम्या क्रवकास क्रनक्रध, पीओर्ीएफ, सहकारी क्रवकास क्रनक्रध, प्रोड्यूस फ़ं र्, क्लाइमेर् र्ेंज तथा अनुसंधान और क्रवकास क्रनक्रध के अंतगथत 10.28 करोड़ की अनुदान सहायता क्रवतररत की है तथा15.96 करोड़ की स्वीकृ क्रत की है।
क्रवत्तीय विथ 2022-23 के दौरान 15.96 करोड़ के कु ल स्वीकृ त अनुदान सहायता में से6.58 करोड़, 03 4 वाक्रणस्तज्यक बैंकों (एसबीआई-11, पीएनबी-2 और बीओबी-3) को 16 सीएफएल स्थाक्रपत करने के क्रलए स्वीकृ त है। संयुक्त राष्टरमहासभा नेविथ2023 को “क्रमलेर््स का अंतराथष्टरीय विथ घोक्रित क्रकया है। यह कृ क्रि में क्रमलेर््स की महत्वपूणथ भूक्रमका और एक स्मार्थ एवं सुपरफू र् के रूप में इसके लाभों के बारे में दुक्रनयाभर में जागरूकता पैदा करने में मदद करेगा। अस्तखल भारतीय स्तर एवं राज्य स्तर पर नाबार्थ ने क्रमलेर््स से संबस्तन्धत क्रवक्रभन्न मुद्ों के समाधान के क्रलए कई पहलें की हैं तथा सक्रर्व, कृ क्रि उत्तराखंर् सरकार की
अध्यक्षता में क्षेत्रीय सलाहकार समूह की बैठक आयोक्रजत की है। हमें क्रवश्वास हैं क्रक नाबार्थ की पहलें राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर बढाने में सहायक रही
हैं ।

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गोल्ड लोन की ईएमआई के भुगतान में चूक होने के गंभीर नतीजे और इससे बचने के तरीकों के बारे में जानिए – श्री रवीश गुप्ता https://involvement.co.in/%e0%a4%97%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%a1-%e0%a4%b2%e0%a5%8b%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%88%e0%a4%8f%e0%a4%ae%e0%a4%86%e0%a4%88-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%ad%e0%a5%81%e0%a4%97%e0%a4%a4/ Wed, 21 Jun 2023 08:39:12 +0000 https://involvement.co.in/?p=12670 गोल्ड लोन भारत में कर्ज की जरूरत वाले लोगों के बीच पैसे उधार लेने के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है और यह सदियों से हमारे समाज का हिस्सा रहा है। पैसों की जरूरत पड़ने पर, लोग इसकी मदद से किसी तरह की परेशानी के बिना सामने आने वाले खर्चों को पूरा कर सकते हैं। औपचारिक वित्तीय संस्थानों की ओर से कम ब्याज दरों, आसान प्रक्रिया, कम दस्तावेजों की जरूरत, लोन की रकम की तुरंत उपलब्धता के साथ-साथ लोन चुकाने के लिए कई तरह के विकल्पों की पेशकश की…

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गोल्ड लोन भारत में कर्ज की जरूरत वाले लोगों के बीच पैसे उधार लेने के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है और यह सदियों से हमारे समाज का हिस्सा रहा है। पैसों की जरूरत पड़ने पर, लोग इसकी मदद से किसी तरह की परेशानी के बिना सामने आने वाले खर्चों को पूरा कर सकते हैं। औपचारिक वित्तीय संस्थानों की ओर से कम ब्याज दरों, आसान प्रक्रिया, कम दस्तावेजों की जरूरत, लोन की रकम की तुरंत उपलब्धता के साथ-साथ लोन चुकाने के लिए कई तरह के विकल्पों की पेशकश की जाती है, और इसी वजह से गोल्ड लोन लोगों के लिए कर्ज लेने का सबसे पसंदीदा तरीका बन गया है। दूसरे लोन की तुलना में गोल्ड लोन को चुकाने की समय-सीमा थोड़ी कम होती है। आमतौर पर, लंबे समय के लिए दिए जाने वाले गोल्ड लोन को चुकाने की अधिकतम अवधि 24 महीने होती है, जिसमें ईएमआई / ब्याज का भुगतान निश्चित अंतराल पर किया जाता है और लोन की अवधि की समाप्ति पर मूलधन का भुगतान किया जाता है; जबकि एकमुश्त चुकाए जाने वाले कम समय के लोन के मामले में यह अवधि छह महीने की होती है।

गोल्ड लोन दरअसल सामान्य मानदंडों एवं शर्तों के तहत दिया जाने वाला एक सिक्योर्ड लोन होता है, जिसके लिए ऐसे लोग भी आवेदन कर सकते हैं जिनका क्रेडिट स्कोर कम है और पिछला क्रेडिट रिकॉर्ड भी बेहतर नहीं है। हालांकि, कई बार ऐसे हालात भी सामने आते हैं जब गोल्ड लोन चुकाने में चूक हो जाती है। इस बात को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है कि लोन चुकाने में चूक के कई परिणाम हो सकते हैं, और यह हर मामले में अलग-अलग हो सकते हैं। इतना ही नहीं, अलग-अलग वित्तीय संस्थानों की ओर से लोन चुकाने में चूक करने वाले ग्राहकों पर की जाने वाली कार्रवाई में भी अंतर होता है। फिर भी, लोन लेने वाले ग्राहक डिफ़ॉल्ट से बचने के लिए कई कदम उठा सकते हैं, और अगर वे पहले से ही उस रास्ते पर हैं तो इससे बाहर भी निकल सकते हैं।

गिरवी रखे हुए सोने के गहनों को नीलामी से बचाएँ

अगर गोल्ड लोन लेने वाला ग्राहक, बार-बार याद दिलाने के बावजूद निर्धारित समय-सीमा के भीतर गोल्ड लोन की पूरी रकम का भुगतान नहीं करता है, तो ऐसी स्थिति में लोन देने वाले संस्थान के पास सोने के गहनों को सार्वजनिक तौर पर नीलाम करने और अपने नुकसान की भरपाई करने का अधिकार होता है। लोन देने वाले संस्थान की ओर से गिरवी रखे सोने की नीलामी से दो हफ़्ते पहले ग्राहक को इसकी सूचना दी जाती है। सोने की नीलामी से बचने के लिए, लोन लेने वाला ग्राहक को सूचना का सम्मान करते हुए समय पर जवाब देना चाहिए। बहुत कम मामलों में, सूचना में बताए गए आंशिक भुगतान की अदायगी का विकल्प दिया जाता है, जो पूरी तरह से लोन देने वाले संस्थान के विवेक पर निर्भर है। लोन लेने वाले ग्राहक, लोन चुकाने की समय-सीमा को बढ़ाने और लोन चुकाने की अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह संभालने के लिए आंशिक भुगतान के विकल्प पर भी चर्चा कर सकते हैं।

भुगतान नहीं करने पर जुर्माने से बचने के लिए भुगतान के विकल्पों के बारे में जानें और उनका आकलन करें

लोन देने वाले संस्थान समय पर भुगतान नहीं करने वाले ग्राहकों से जुर्माने के तौर पर ब्याज वसूल सकते हैं। यह जुर्माना पूरी बकाया राशि पर लिया जाता है, जो लोन चुकाने की नियत तारीख के दिन से शुरू होती है। जुर्माने के तौर पर ब्याज आमतौर पर सालाना 3% से लेकर सालाना 12% की दर से लगाया जाता है, और यह लोन देने वाले हर संस्थान के लिए अलग-अलग होता है। गोल्ड लोन लेने वाले संस्थान ग्राहकों की सुविधा के अनुसार लोन चुकाने की विधि चुनने की आजादी देते हैं। गोल्ड लोन लेने वाले ग्राहकों को इसके फायदे और नुकसान की अच्छी तरह तुलना करने और भविष्य में होने वाली आमदनी की संभावनाओं पर गौर करने से गोल्ड लोन चुकाने के सबसे बेहतर विकल्प को चुनने में मदद मिल सकती है, जो उनकी जरूरतों के हिसाब से सबसे उपयुक्त हो।

मूलधन और ब्याज की रकम को चुकाने के लिए कई सुविधाजनक विकल्प हैं। लोन लेने वाले ग्राहक हर महीने मूलधन और ब्याज, दोनों का भुगतान कर सकते हैं। यह हर महीने निश्चित आमदनी वाले लोगों के लिए सबसे बेहतर विकल्प है। दूसरा तरीका यह है कि, लोन लेने वाला ग्राहक नियमित अंतराल पर ब्याज का भुगतान कर सकता है और लोन की अवधि के अंत में मूलधन चुका सकता है। इस विकल्प में, लोन लेने वाले ग्राहकों को लोन की पूरी समय-सीमा के दौरान मूलधन के भुगतान के बारे में चिंतित होने की जरूरत नहीं होती है। इसके अलावा, लोन देने वाले संस्थान की ओर से लोन की रकम के आंशिक भुगतान का विकल्प भी दिया जाता है, जिसमें ग्राहक लोन की अवधि के दौरान अपनी सुविधा के अनुसार ब्याज और मूलधन का आंशिक भुगतान कर सकते हैं। बुलेट रीपेमेंट का विकल्प चुनने पर ग्राहक लोन की अवधि के अंत में ब्याज और मूलधन, दोनों की रकम एक-साथ चुका सकते हैं। लोन पर ब्याज की गणना हर महीने की जाती है, इसका भुगतान गोल्ड लोन की अवधि के अंत में ही किया जाता है। इस तरीके से, लोन लेने वाले ग्राहक को ईएमआई की समय-सीमा का पालन करने या पूरी अवधि के दौरान आंशिक भुगतान करने के बारे में चिंतित होने की जरूरत नहीं होती है।

समय-समय पर और बार-बार भेजे जाने वाले रिमाइंडर से बचें

इस बात को याद रखें कि, लोन देने वाले संस्थान विनियमित होते हैं और डिफॉल्टर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने से पहले डिफॉल्ट के बारे में लिखित सूचना देते हैं। उनका इरादा लोन लेने वाले ग्राहकों को दोषी ठहराने या उनके अधिकारों को छीनने का नहीं होता है, बल्कि वे ग्राहकों को नियत समय के भीतर बकाया राशि चुकाने के लिए सूचना भेजते हैं। उन्हें वे ई-मेल, टेक्स्ट मैसेज, कॉल के माध्यम से बार-बार सूचना भेजते हैं, साथ ही अगर लोन लेने वाले ग्राहक चुकौती की समय-सीमा से चूक जाते हैं या गोल्ड लोन चुकाने में डिफ़ॉल्ट करते हैं, तो उस स्थिति में उन्हें पत्र भी भेजा जाता है। लोन लेने वाले ग्राहकों को इसके संभावित नतीजों के बारे में जानकारी देने के लिए रिमाइंडर भेजे जाते हैं। ग्राहक को लोन चुकाने की अपनी क्षमता का अच्छी तरह अंदाजा लगाना चाहिए, साथ ही लोन चुकाने की समय-सीमा को फिर से तय करने या उसमें बदलाव करने के लिए लोन देने वाले संस्थान के साथ बातचीत भी करनी चाहिए।

क्रेडिट स्कोर पर असर

वैसे तो क्रेडिट स्कोर और गोल्ड लोन की मंजूरी के बीच कोई संबंध नहीं है, लेकिन गोल्ड लोन चुकाने में विफलता का असर उस पर भी पड़ सकता है। आमतौर पर, भारत में गोल्ड लोन देने वाली कंपनियाँ क्रेडिट ब्यूरो को गोल्ड लोन की मंजूर की गई रकम को चुकाने में विफलता के बारे में सूचना भेजती हैं। इसके बाद क्रेडिट ब्यूरो सभी एनबीएफसी और बैंकों को सूचित करता है। इसका पूरा असर क्रेडिट स्कोर पर पड़ता है और इस तेरा भविष्य में लोन के लिए आवेदन करने की संभावना को बाधित करता है। इसके अलावा, अगर लोन मिल भी जाए तो उसकी ब्याज दरें सामान्य ब्याज दर से अधिक होंगी।

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May is Mental Health Awareness Month, an important time to talkabout psychological and emotional wellbeing says Ms. Josphin https://involvement.co.in/may-is-mental-health-awareness-month-an-important-time-to-talkabout-psychological-and-emotional-wellbeing-says-ms-josphin/ Sun, 21 May 2023 02:00:23 +0000 https://involvement.co.in/?p=12466 Singh, Vice- Chairperson, PRAGATI. Mental Health Awareness Month encourages wellness and the importance of managing mental health. The goal is to raise awareness about mental illness and to reduce the stigma that surrounds it. Mental health is an essential part of our overall well-being and has a significant impact on our relationships, productivity, and ability to adapt to change and cope with adversity.  Changes in mental health and signs of distress in young people can show up in many ways. Some examples of mood changes are irritability, anger and withdrawal.…

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Singh, Vice- Chairperson, PRAGATI.

Mental Health Awareness Month encourages wellness and the importance of managing mental health. The goal is to raise awareness about mental illness and to reduce the stigma that surrounds it. Mental health is an essential part of our overall well-being and has a significant impact on our relationships, productivity, and ability to adapt to change and cope with adversity.  Changes in mental health and signs of distress in young people can show up in many ways. Some examples of mood changes are irritability, anger and withdrawal. Other signs can be changes in their thoughts, appearance, performance at school and sleeping or eating patterns. Anxiety problems, behaviour problems and depression are the most commonly diagnosed mental disorders in children.

What we know is that depression and anxiety have increased over time. And keep in mind that, for adolescents, depression, substance use and suicide are important concerns. Normalizing caring for and seeking help with mental health is a gift we can give ourselves and the next generation. We all need mental health support at many times in our lives; what a gift it would be if accessing that help were viewed as just part of normal life. We see this in grief all the time: No one wants to allow people to be sad. We seek to fix instead of listen. We pressure grieving people to “get over it” to make others more comfortable.

We set the definition of success after a traumatic event as “returning to normal,” even when returning to a past normal is impossible. The truth is we are always changed by the challenges we overcome, and integrating what we’ve learned about ourselves in the aftermath is one of the key elements of building resilience. When we stigmatize mental health care, we create an environment that ensures that the people who most need help will suffer alone. Stigma often exists because of negative stereotypes or myths. For example, some people might believe that treatment does not help. However, mental health conditions such as anxiety are very treatable, but only 36% of people go to get help. Others believe that anxiety just happens, or that it is very uncommon.

This, again, is untrue. Anxiety disorder it the most common mental health disorder in the metropolitan cities in India, and it is caused by several factors such as brain activity to genetics, to life events. Since the pandemic began, rates of psychological distress among young people have increased. The pandemic is most heavily affecting those who were already vulnerable. This includes youth with disabilities, racial and ethnic minorities, LBGTQ+ youth and other marginalized communities. Meditation helps to calm the mind. If you meditate starting from 10 minutes a day and gradually increase the time, your mind will be calm. Along with meditation, small exercises should also be done. 

Simple breathing exercises for 10-15 minutes daily can help a lot. Also, Cognitive Behavioral Therapy (CBT) is recommended for people suffering from stress, depression and anxiety. CBT helps identify emotional reactions. Light exercises such as treadmill walking, cycling, swimming, jogging, stair climbing, brisk walking should be practiced for at least 30 minutes a day. One of the things that we underestimate as a society is how our global mental health impacts us as individuals. And we have seen it over and over again as daily we hear of cases of violence against women, and other forms of aggressive behaviour etc, “If the world has taught me anything, it has taught me to remember to be kind, do not judge what you cannot see”, Says Josphin. Pain is invisible. With all the craziness going on every day, breathe. It is okay to feel down, to feel overloaded, overwhelmed, sad, frustrated.

Try not to hold onto it. Seek help, talk to your family, friends, pastor, priest – talk to someone. And for those listening, really hear, pay attention, because sometimes the silence says more than the words. There is no shame to ask for help. It takes courage, and we all have it within us. It takes all of us to realize mental health needs to be talked about, not buried under the rug. We need open, honest conversations; we have a mental health crisis in this country that is only getting worse as we become more divided. Fear only adds to it. Mental health doesn’t just affect veterans and first responders; it can affect everyone.

Trauma is trauma, and enough repeated exposure changes the brain. There is hope, and there can be healing, but we all need to work together to help those who need our help. We need to stop the silence surrounding mental health and model healthy behaviors so that we can assist with support and help guide towards resources. We are not in this alone, nor are those suffering from mental health issues.So, reach out if you need help,or be there for someone who needs help.

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पाचन में सहायता करता है मिलेट्स: विकास कुमार https://involvement.co.in/%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%9a%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%b8%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%af%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%ae%e0%a4%bf/ Sat, 22 Apr 2023 08:20:02 +0000 https://involvement.co.in/?p=11988 प्राचीन काल में हमारा पुराना खान-पान चिकित्सकीय गुणों से युक्त था लेकिन लाइफस्टाइल बदलने से हमारा खान-पान भी बदल गया। हमारी नई समाजिक संस्कृति ने बदलते परिवेश में अपने आहार को पूर्ण रूप से बदल लिया है। रेडी टू ईट खाना, डिब्बा बंद प्रिजर्वेटिव आहार, विभिन्न प्रकार के रसायनों से भरपूर रंग-बिरंगे आधुनिक वसा युक्त भोजन एवं मिलावटी खाना आज हमारे घर में अपना पैठ बना चुका है एवं हम इन सभी नुकसान देने वाले भोजन को दिन-रात खाते रहते हैं जिसके कारण अनंत बीमारियां अब हमें जकड़ लिया है।…

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प्राचीन काल में हमारा पुराना खान-पान चिकित्सकीय गुणों से युक्त था लेकिन लाइफस्टाइल बदलने से हमारा खान-पान भी बदल गया। हमारी नई समाजिक संस्कृति ने बदलते परिवेश में अपने आहार को पूर्ण रूप से बदल लिया है। रेडी टू ईट खाना, डिब्बा बंद प्रिजर्वेटिव आहार, विभिन्न प्रकार के रसायनों से भरपूर रंग-बिरंगे आधुनिक वसा युक्त भोजन एवं मिलावटी खाना आज हमारे घर में अपना पैठ बना चुका है एवं हम इन सभी नुकसान देने वाले भोजन को दिन-रात खाते रहते हैं जिसके कारण अनंत बीमारियां अब हमें जकड़ लिया है।

इस आधुनिक युग में जितना समय लोग अपने जीवन काल में पैसे कमाने और उसे बचत करने में लगाते हैं उससे कहीं ज्यादा अब लोग अपने स्वास्थ्य में खर्च करते हैं और आप यह देख सकते हैं कि अब भारत में हर तरफ बड़े-बड़े अस्पताल, स्वास्थ्य जांच केंद्र, दवाइयों एवं औषधियों के दुकाने खुल चुके हैं जहां लोग स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए पानी की तरह पैसे खर्च कर रहे हैं और स्वास्थ्य सुविधा का लाभ ले रहे हैं। यह परिस्थिति समृद्धि की निशानी तो कतई नहीं है। भारत सरकार ने मिलेट्स के प्रति जो जागरूकता अभियान चलाना शुरु किया है यह एक दूरगामी परिणाम देने वाला अभियान है एवं आने वाले दिनों में यह एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है जिस तरह से लोगों में अब मिनट के प्रति जागरूकता आ रही है। वह लोगों को पुनः मिलेट्स की ओर आकर्षित कर रही है।

यह चिकित्सकीय गुणों से युक्त होते हैं ! लोग अब धीरे-धीरे पुराने खान-पान की तरफ लौटने लगे हैं। पुराने खान-पान में मिलेट्स की मात्रा भरपूर होती थी, लेकिन शार्टकट खान-पान के चक्कर में वक्त के साथ-साथ इनसे दूर होने लगे। मिलेट्स के प्रति लोगों में अब जागरूकता बढ़ी है। भारत में दो वर्गों के मोटे अनाज उगाए जाते हैं। प्रमुख मोटे अनाज में ज्वार , बाजरा और रागी शामिल हैं, जबकि अन्य मोटे अनाज में कंगनी, कुटकी , कोदो , वरिगा/पुनर्वा और साँवा शामिल हैं। मिलेट्स छोटी बीज वाली घासों का एक समूह है जो अफ्रीका, एशिया और भारत सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में उगाई और खाई जाती है। वे कई सदियों से मुख्य भोजन रहे हैं और प्रसंस्कृत अनाज के स्वस्थ विकल्प के रूप में लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं। मिलेट्स पोषक तत्वों की एक विस्तृत श्रृंखला से भरा होता है और कई तरह से स्वास्थ्य को लाभ प्रदान करता है। इस लेख में हम मिलेट्स के कुछ फायदों के बारे में जानेंगे।

पोषक तत्वों से भरपूर मिलेट्स फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और खनिज जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है। वे कार्बोहाइड्रेट का एक अच्छा स्रोत हैं, जो उन्हें एक उत्कृष्ट ऊर्जा स्रोत बनाते हैं। बाजरा वसा और लस मुक्त में भी कम होता है, जिससे वे सीलिएक रोग या लस असहिष्णुता वाले लोगों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प बन जाते हैं। कोलेस्ट्रॉल कम करता है मिलेट्स में घुलनशील फाइबर होता है, जो शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है। फाइबर पाचन तंत्र में कोलेस्ट्रॉल के साथ बांधता है और इसे शरीर से बाहर निकालता है, जिससे हृदय रोग का खतरा कम होता है।


पाचन में सहायता करता है मिलेट्स अघुलनशील फाइबर का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जो स्वस्थ पाचन को बढ़ावा देता है। अघुलनशील फाइबर मल में बल्क जोड़ता है, आंतों से गुजरना आसान बनाता है, कब्ज को रोकता है, और कोलन कैंसर के खतरे को कम करता है।वजन घटाने में मदद करता है मिलेट्स कैलोरी में कम और फाइबर में उच्च होता है, जो वजन घटाने को बढ़ावा देने में मदद करता है। मिलेट्स में मौजूद फाइबर आपको अधिक समय तक पेट को भरा रखने में मदद करता है, जिससे अधिक खाना खाने की इच्छा कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त, मिलेट्स एक कम-ग्लाइसेमिक-इंडेक्स भोजन है, जिसका अर्थ है कि वे धीरे-धीरे रक्तप्रवाह में चीनी छोड़ते हैं, जिससे रक्त शर्करा के स्तर में अचानक वृद्धि को रोका जा सकता है जिससे क्रेविंग हो सकती है।

मधुमेह के लिए अच्छा है मिलेट्स जटिल कार्बोहाइड्रेट का एक अच्छा स्रोत है जो धीरे-धीरे पचता है, रक्त शर्करा के स्तर में अचानक स्पाइक्स के जोखिम को कम करता है। मिलेट्स में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे यह मधुमेह वाले लोगों के लिए एक उत्कृष्ट भोजन बन जाता है। कैंसर के खतरे को कम करता है मिलेट्स में एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जो शरीर से हानिकारक मुक्त कणों को खत्म करने में मदद करते हैं जो सेल को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कैंसर का कारण बन सकते हैं। मिलेट्स में फाइटोन्यूट्रिएंट्स में कैंसर रोधी गुण भी होते हैं जो कैंसर के खतरे को कम कर सकते हैं। हड्डी के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है मिलेट्स कैल्शियम और मैग्नीशियम का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक खनिज हैं।

वे हड्डियों को मजबूत करने, ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम को कम करने और समग्र हड्डी स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। मिलेट्स अत्यधिक पौष्टिक भोजन है जो कई तरह से स्वास्थ्य को लाभ प्रदान करता है। वे फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों का एक उत्कृष्ट स्रोत हैं, और हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह और मोटापे के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं। मिलेट्स बहुमुखी भी हैं और व्यंजनों की एक विस्तृत श्रृंखला में इसका उपयोग किया जा सकता है, जिससे वे किसी भी स्वस्थ आहार के लिए एक उत्कृष्ट जोड़ बन जाते हैं।मिलेट्स के सभी प्रजाति के अनाज को उगने के लिए पानी की निम्न जरूरत होती है जिससे उनकी पैदावार बंजर भूमि पर भी थोड़े ही पानी के सिंचाई से फसल अत्यधिक मात्रा में हो जाती है।

मिलेट्स के प्रति जागरूकता गांव के किसानों को बहुत प्रभावित कर रहा है एवं अब गांव के दूरदराज में रहने वाले किसान भी इसके फसल को पुनः उगाना शुरू कर दिए हैं। ग्रामीण महिलाओं को मिलेट्स के माध्यम से अनेक प्रकार के रोजगार मिल सकते हैं एवं अपने गांव में इसकी खेती करने के साथ-साथ मिलेट्स के साबुत अनाज विभिन्न प्रकार के आटा, बिस्किट एवं अन्य पारंपरिक पकवान बनाकर उसे बाजार में उपलब्ध करा सकते हैं, यह स्वरोजगार एवं रोजगार को बढ़ावा देगा एवं सैकड़ों साल पहले के जो मोटे अनाज को खाने वाली परंपरा थी उसे पुनः एक बार हमारे समाज में विस्तार पूर्वक से प्रचलन में लाया जा सकता है। लेखक विकास कुमार एक जनसंपर्क प्रोफेशनल हैं एवं उन्हें एक दशक से ऊपर का राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम करने का अनुभव प्राप्त है। विकास कुमार उत्तराखंड में मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए “प्योर ग्रेनरी” द ट्रेजर ऑफ हिमालया, स्टार्टअप्स के फाउंडिंग पार्टनर्स भी हैं।

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वृद्ध व्यक्ति की रक्षा करना सरकार का धर्म: प्रमोद वात्सल्य https://involvement.co.in/%e0%a4%b5%e0%a5%83%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%a7-%e0%a4%b5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a4%b0/ Mon, 06 Mar 2023 08:18:41 +0000 https://involvement.co.in/?p=11410 हर परिवार की सुख और शांति तभी संभव है जब उस परिवार के हर सदस्य को  मान, सम्मान एवं स्वाभिमान की रक्षा हो सके। आज के इस आधुनिक युग में एकल परिवार का प्रचलन  बहुत तेजी से बढ़ रहा है  एवं संयुक्त परिवार एक इतिहास बनता जा रहा है भारतीय समाज में।  हमारे समाज के बहुत सारी ऐसी व्यवस्थाएं हैं जिसको आज लोग पसंद नहीं कर रहे हैं एवं इस स्वतंत्र भारत में  आधुनिकीकरण होने की वजह से सारी संस्कृति एवं धरोहर वाली जो सभ्यता एवं परंपरागत सिस्टम था वह…

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हर परिवार की सुख और शांति तभी संभव है जब उस परिवार के हर सदस्य को  मान, सम्मान एवं स्वाभिमान की रक्षा हो सके। आज के इस आधुनिक युग में एकल परिवार का प्रचलन  बहुत तेजी से बढ़ रहा है  एवं संयुक्त परिवार एक इतिहास बनता जा रहा है भारतीय समाज में।  हमारे समाज के बहुत सारी ऐसी व्यवस्थाएं हैं जिसको आज लोग पसंद नहीं कर रहे हैं एवं इस स्वतंत्र भारत में  आधुनिकीकरण होने की वजह से सारी संस्कृति एवं धरोहर वाली जो सभ्यता एवं परंपरागत सिस्टम था वह सब टूट चुका है।  हर परिवार में आपको ऐसी कहानी सुनने को अब मिलेगी जिसमें  बच्चों के बड़े होते ही मां-बाप  अकेले पीछे छूट जाते हैं। उनके बच्चे अन्य शहरों में एवं अन्य देशों में कामकाज की तलाश में चले जाते हैं!  आज हमारे बहुआयामी समाज के जो संस्कृति बदल रही है उसमें बच्चों के साथ-साथ मां-बाप में भी बदलाव हो रहे हैं।  बदलाव एक प्रक्रिया है परंतु ऐसे बदलाव जो संस्कृति,  सभ्यता एवं परंपराओं को तार-तार कर बदल रही हो ऐसी बदलाव हमें नहीं चाहिए, हम हिंदुस्तान की धरती पर हमेशा से  अपने   वृद्ध मां-बाप की रक्षा करते  आए हैं। उनके आशीर्वाद लेते आए हैं  एवं हर शुभ काम करने से पहले हम  उनके चरण स्पर्श करना कभी नहीं भूले हैं।  हमें पता होता था कि हमारा भला कोई चाहे ना चाहे परंतु ईश्वर और  हमारे मां-बाप जरूर हमारे  शुभ कामों में आशीर्वाद देकर हमें विजय बनाएंगे।

 पूरे विश्व में अब  वृद्धा आश्रम की संस्कृति फैलती जा रही है बूढ़े मां बाप के लिए अब अनगिनत आश्रमों  का निर्माण हो रहा है, कई तो बिल्कुल प्राइवेट कंपनियों की तरह संचालित हो रहे हैं।  कई आश्रमों में वृद्ध व्यक्ति अपने पूरे जीवन की कमाई,  धन- दौलत दान में देकर उस आश्रम में प्रवेश कर अपना जीवन गुजारते हैं और वहीं पर मृत्युलोक को प्राप्त हो जाते हैं।  क्या कोई सोच सकता है कि ऐसी  परिस्थिति वृद्ध व्यक्तियों के साथ अब क्यों दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है?  यह बिल्कुल आधुनिक समाज के मुंह पर एक तमाचा है जहां पर बूढ़े मां बाप को देख  रेख करने के लिए कोई भी परिवार का सदस्य आगे नहीं आ रहा है।  चाहे वह व्यक्ति  कि आय निम्न , मध्यम एवं उच्च वर्ग का ही क्यों ना हो सब के हाल एक जैसे ही है, सबका बुढापा उसी लचर अवस्था में गुजरती है जिस व्यवस्था का शिकार आज के समय में पूरे समाज हो चुका है।  अगर किसी की पत्नी मर जाए और वह बुड्ढा व्यक्ति अकेला हो उस हालात में  उस बूढ़े व्यक्ति का जीवन नर्क के समान हो जाता है ना उसको घर में उसके बच्चे रखना चाहते ना ही आश्रमों में  पूरा सहयोग मिलता है। 

 मैं 84 साल का एक वृद्ध व्यक्ति  तमाम हालातों से गुजरा हुआ ,  सिस्टम का मारा हुआ ,दर-दर की ठोकरें खाता हुआ ,  मेरे नौजवान  बेटे की हत्या हो जाती है और मुझे घर से निकाल दिया जाता है,  अगर मेरा कोई सहयोगी ना हो तो मेरी भी हालात  उन्हीं बूढ़े  लाचार व्यक्ति की तरह ही हो जाएगी जो दर-दर की ठोकरें खाते हुए  कहीं सड़क किनारे, नदी के किनारे या फिर  वृद्धा आश्रम में  भटकता हुआ मिलेगा।  उत्तराखंड के परिपेक्ष में देखे तो आप देख सकते हैं कि शहर में अनगिनत ऐसे समाचार आना शुरू हो गए हैं जिसमें वृद्ध मां बाप के धन दौलत को उसके अपने बच्चे बेटे- बेटियां  एवं बहू हथिया लेते हैं और उस बूढ़े मां बाप को लात मारकर घर से बाहर फेंक देते हैं।  मुझे लगता है कि हर वृद्ध व्यक्ति को अपने कमाए हुए धन- दौलत एवं संपत्तियों में  अपने परिवार को किस रूप में कितना देना है उसे जवानी में ही सोच लेना चाहिए।  भावनाओं में बहकर अपनी संपत्तियों का बंटवारा नहीं करना चाहिए एवं  कानून व्यवस्था के सलाह मशवरा लेते हुए  हर व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है कि वह अपना वसीयत जरूर बनाए, वह डिसाइड करें कि आपको अपनी संपत्ति में से कितने बहू, बेटे -बेटियों को देना है और  कितना समाज को सहयोग के रूप में दान करना है।  आवश्यकता से अधिक संपत्ति  अर्जित करने की कोशिश नहीं करें तो बेहतर है, परंतु अगर आपके पास आवश्यकता से अधिक संपत्ति है तो आपको अपने विवेक के अनुसार घर परिवार के साथ साथ समाज को भी उस संपत्ति में अधिकार देना चाहिए, ऐसे अनेकों शुभ कार्य संस्थाओं द्वारा संचालित की जाती है, सरकारों द्वारा भी संचालित की जाती है जहां पर आप अपनी संपत्ति को दान देकर उस व्यवस्था को  बनाए रखने में सहयोग कर सकते हैं और आप अपनी संपत्ति का सदुपयोग कर सकते हैं।  अगर आपके पास आवश्यकता से अधिक संपत्ति है तो आप यह सुनिश्चित कर लो, परिवार के लोग या फिर कोई बाहरी लोग आप पर नजर जरूर बनाए रखा होगा या तो वह आपकी मृत्यु का इंतजार कर रहा होगा या फिर आप को मृत्यु  के मुंह में धकेल  दिया जाएगा जिससे आपकी संपत्ति को हड़प लिया जाए!   अब तो  वृद्ध व्यक्ति को अकेले घर में रहना भी मुश्किल है आप आए दिन यह भी देखते होंगे समाचार पत्रों में कि वृद्ध व्यक्ति को किसी ने धारदार हथियार से गला  काट दिया, किसी ने छत से उसे नीचे फेंक दिया, किसी ने उसे सर पर मार कर  उसकी हत्या कर दी। 

 उत्तराखंड में  वृद्ध व्यक्तियों की अवस्थाओं पर चिंतन मनन एवं  विचार करना  अब अति आवश्यक हो गया है।  हर वृद्ध  मां-बाप अब डर के साए में जी रहे हैं कि  बच्चे उनके साथ  क्या सलूक करेंगे?  धन दौलत और संपत्ति कमाने में पूरे जीवन व्यतीत कर चुके यह वृद्धि मां-बाप अब उसी  संपत्ति  को  अपने  जीवन के लिए खतरा महसूस कर रहे हैं।  ज्यादातर व्यक्ति पूरे जीवन अपने संपत्तियों पर एवं  आय पर सरकार को टैक्स देते आ रहे हैं एवं वे सभी लगभग सारी प्रक्रियाओं को पूरा कर  अपने जीवन की कुल कमाई का लगभग 10 से 15 परसेंट सरकार को ही दे रहे हैं ऐसी अवस्था में सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि अगर उसकी कोई घर परिवार में सुने या ना सुने परंतु उसके लिए कोई  ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जहां पर वृद्ध व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित महसूस करें, अगर वह घर से तिरस्कृत होकर निकाल दिया जाता है तो सरकार को शरण देने के लिए कोई व्यवस्था  बनानी चाहिए।  आने वाले दिनों में मुझे ऐसा लगता है कि वृद्ध व्यक्तियों के साथ बहुत कुछ होने वाला है  और यह सावधानी आज के नौजवानों को बरतनी चाहिए और हमारी अवस्थाओं से सीख लेनी चाहिए कि उनका भी हसरत  एक दिन इस तरह से ना हो इसीलिए कंधे से कंधा मिलाकर ऐसी व्यवस्था का निर्माण करने में युवा वर्ग  मदद करें जिससे कि सामाजिक ढांचा में ज्यादा बदलाव ना करते हुए वृद्ध व्यक्ति को इस दुनिया में रहने का हक मिल सके एवं  उनको हक की लड़ाई लड़ने में  सहूलियत के साथ- साथ व्यवस्था का लाभ  भी  मिल सके। 

 लेखक

 प्रमोद वात्सल्य एक  84 साल का वृद्ध व्यक्ति हैं एवं वे  कृषि विभाग  के रिटायर्ड ऑफिसर भी हैं साथ ही साथ  वे अपना पूरा जीवन समाजिक  कार्यकर्ता के रूप में व्यतीत किया है एवं  वे अपने जीवन में आयुर्वेद को सर्वोपरि रखते हुए समाज को आयुर्वेद के क्षेत्र में बहुत कुछ सहयोग भी दिया है।

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कृषि नवीनीकरण के लिए ऋण आवश्यक: प्रभात चतुर्वेदी https://involvement.co.in/%e0%a4%95%e0%a5%83%e0%a4%b7%e0%a4%bf-%e0%a4%a8%e0%a4%b5%e0%a5%80%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a3-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%8b%e0%a4%a3/ Thu, 02 Mar 2023 05:51:36 +0000 https://involvement.co.in/?p=11291 भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि (खेतीबाड़ी) एक प्रमुख क्षेत्र है, जिसमें लगभग 85 प्रतिशत के कृषि जोत का क्षेत्र 2 हेक्टर से कम है, फिर भी हमारी 140 करोड की बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त भोजन और फाइबर का उत्पादन कर रहा है। इसके साथ ही, यह निर्यात करके कुछ नेट एक्सपोर्ट मुनाफ़ा भी उत्पन्न करता है।विशेष रूप से संस्थाओं द्वारा छोटे और सीमांत किसानों` को पर्याप्त एवं समय पर बड़े पैमाने पर कम लागत वाले ऋण की पुष्टी के कारण वर्तमान में यह विकास संभव हो पाया है| भारतीय पॉलिसी मेकर्स के निरंतर प्रयास द्वारा किसानों को इंस्टीटूशनल स्रोतों से ऋृण प्राप्त करने में काफ़ी हद तक मदद मिली है | इन प्रयासों ने सभी किसानों को समय पर और पर्याप्त ऋण सहायता प्रदान करने के लिए प्रगतिशील संस्थागतकरण पर जोर दिया है, ताकि, छोटे और सीमांत किसान कृषि पद्धतियों में सुधार के लिए सक्षम बनने पर ध्यान केंद्रित कर सके। भले ही कृषिऋण (क्रेडिट) व्यवस्थाओं में सुधार करने तथा किसान समुदाय को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए सरकार ने कुछ सक्रिय कदम उठाए हैं, कुछ पड़ोसी देशों की तुलना में अभी भी काफी सक्रीय नीतियों के समावेश की आवश्यक्ता हैजहां पिछले दशकों में ऋण की मात्रा में सुधार हुआ है, वहीं इसकी गुणवत्ता और कृषि पर इसका प्रभाव सिर्फ कमजोर ही हुआ है। कृषि के लिए संतोषजनक पूंजी प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। चूंकि अधिकांश किसानों के लिए उपकरणों की खरीदी में ही अधिकांश धन की जरुरत पढ़ती है, आज भी अधिकांश कृषि ऋण (क्रेडिट) एक कार्यशील पूंजी के रूप में होता है। परिणामस्वरूप किसानों की आय का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बाधित होता है। भारतीय ऋण (क्रेडिट) मांग के विश्लेषण से पता चलता है कि, भले ही बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान प्रायरिटी सेक्टर लैंडिंग ऋण के तहत किसान समुदाय तक अपनी पहुंच को गतिवृद्ध रूप से बढ़ा रहे हैं, लेकिन किसानों के लोन की जरूरतों को पूरा करने में अभी भी सक्षम नहीं है। इन परिस्तिथियों के चलते, एनबीएफसी (NBFC) और फिनटेक (Fintech) संस्थानों ने कृषि यंत्रीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए किसानों की ऋृण आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु सरहानीय कार्य कर रहे है। यह वास्तव में भारत की विविध और उद्यमशीलता की भावना का प्रमाण है। बड़े कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर के वित्तपोषण से लेकर छोटे किसानों के माइक्रोफाइनेंस तक, इन एनबीएफसी एनबीएफसी (NBFC) और फिनटेक (Fintech) संस्थानों ने समय की जरूरत को ध्यान में रखकर और समग्र रूप से किसान समुदाय की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विभिन्न सेवाएं उलपब्ध कराने के लिये अग्रसर है। समय के साथ ये संस्थांयें सुनियंत्रित होते हुए, कई उदाहरणों में प्रौद्योगिकी, नवीनीकरण, जोखिम प्रबंधन और अभिशासन में सर्वोत्तम रणनीतिओं को अपना रहे है एवं वित्तीय समावेशन पर सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे है। कृषिकेंद्रित एनबीएफसी / फिनटेक किसानों की दीर्घकालिक ऋण आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं क्योंकि उनमें से अधिकांश की ग्रामीण भारत में उच्च पैठ है, और उनके ऋण वितरण का बड़ा हिस्सा केवल छोटे और सीमांत किसानों पर केंद्रित है। सार्वजनिक डोमेन डेटा बताता है कि कुल छोटे और सीमांत किसानों में से केवल 30 प्रतिशत किसान बैंकों और अन्य औपचारिक क्रेडिट चैनलों तक ऋण हेतु पहुंच पाते है। किसानों को ऋण प्रदान करने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचने तथा सिमित टेक्नोलॉजी कुछ मुख्य कारण है जिनके चलते बैंको को इन किसानों तक पहुंचना संभव नहींहै।

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भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि (खेतीबाड़ी) एक प्रमुख क्षेत्र है, जिसमें लगभग 85 प्रतिशत के कृषि जोत का क्षेत्र 2 हेक्टर से कम है, फिर भी हमारी 140 करोड की बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त भोजन और फाइबर का उत्पादन कर रहा है। इसके साथ ही, यह निर्यात करके कुछ नेट एक्सपोर्ट मुनाफ़ा भी उत्पन्न करता है।विशेष रूप से संस्थाओं द्वारा छोटे और सीमांत किसानों` को पर्याप्त एवं समय पर बड़े पैमाने पर कम लागत वाले ऋण की पुष्टी के कारण वर्तमान में यह विकास संभव हो पाया है| भारतीय पॉलिसी मेकर्स के निरंतर प्रयास द्वारा किसानों को इंस्टीटूशनल स्रोतों से ऋृण प्राप्त करने में काफ़ी हद तक मदद मिली है | इन प्रयासों ने सभी किसानों को समय पर और पर्याप्त ऋण सहायता प्रदान करने के लिए प्रगतिशील संस्थागतकरण पर जोर दिया है, ताकि, छोटे और सीमांत किसान कृषि पद्धतियों में सुधार के लिए सक्षम बनने पर ध्यान केंद्रित कर सके।

भले ही कृषिऋण (क्रेडिट) व्यवस्थाओं में सुधार करने तथा किसान समुदाय को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए सरकार ने कुछ सक्रिय कदम उठाए हैं, कुछ पड़ोसी देशों की तुलना में अभी भी काफी सक्रीय नीतियों के समावेश की आवश्यक्ता हैजहां पिछले दशकों में ऋण की मात्रा में सुधार हुआ है, वहीं इसकी गुणवत्ता और कृषि पर इसका प्रभाव सिर्फ कमजोर ही हुआ है। कृषि के लिए संतोषजनक पूंजी प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। चूंकि अधिकांश किसानों के लिए उपकरणों की खरीदी में ही अधिकांश धन की जरुरत पढ़ती है, आज भी अधिकांश कृषि ऋण (क्रेडिट) एक कार्यशील पूंजी के रूप में होता है। परिणामस्वरूप किसानों की आय का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बाधित होता है।

भारतीय ऋण (क्रेडिट) मांग के विश्लेषण से पता चलता है कि, भले ही बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान प्रायरिटी सेक्टर लैंडिंग ऋण के तहत किसान समुदाय तक अपनी पहुंच को गतिवृद्ध रूप से बढ़ा रहे हैं, लेकिन किसानों के लोन की जरूरतों को पूरा करने में अभी भी सक्षम नहीं है। इन परिस्तिथियों के चलते, एनबीएफसी (NBFC) और फिनटेक (Fintech) संस्थानों ने कृषि यंत्रीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए किसानों की ऋृण आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु सरहानीय कार्य कर रहे है। यह वास्तव में भारत की विविध और उद्यमशीलता की भावना का प्रमाण है। बड़े कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर के वित्तपोषण से लेकर छोटे किसानों के माइक्रोफाइनेंस तक, इन एनबीएफसी एनबीएफसी (NBFC) और फिनटेक (Fintech) संस्थानों ने समय की जरूरत को ध्यान में रखकर और समग्र रूप से किसान समुदाय की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विभिन्न सेवाएं उलपब्ध कराने के लिये अग्रसर है। समय के साथ ये संस्थांयें सुनियंत्रित होते हुए, कई उदाहरणों में प्रौद्योगिकी, नवीनीकरण, जोखिम प्रबंधन और अभिशासन में सर्वोत्तम रणनीतिओं को अपना रहे है एवं वित्तीय समावेशन पर सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे है।

कृषिकेंद्रित एनबीएफसी / फिनटेक किसानों की दीर्घकालिक ऋण आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं क्योंकि उनमें से अधिकांश की ग्रामीण भारत में उच्च पैठ है, और उनके ऋण वितरण का बड़ा हिस्सा केवल छोटे और सीमांत किसानों पर केंद्रित है। सार्वजनिक डोमेन डेटा बताता है कि कुल छोटे और सीमांत किसानों में से केवल 30 प्रतिशत किसान बैंकों और अन्य औपचारिक क्रेडिट चैनलों तक ऋण हेतु पहुंच पाते है। किसानों को ऋण प्रदान करने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचने तथा सिमित टेक्नोलॉजी कुछ मुख्य कारण है जिनके चलते बैंको को इन किसानों तक पहुंचना संभव नहींहै।

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वित्तीय मामलों में नए हैं ? पेश है आपके वित्तीय प्रबंधन के लिए उद्देश्यपूर्ण गाइड- आफरीन अली https://involvement.co.in/%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%af-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%b2%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%a8%e0%a4%8f-%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%82/ Thu, 16 Feb 2023 05:58:56 +0000 https://involvement.co.in/?p=11036 भारत, सबसे बड़ी युवा एवं उभरती हुयी अर्थव्यवस्था, होने का दावा करती है और प्रमुख रुप से जेन-Z व साथ ही साथ मिलिनियल आबादी के होने का और इस पूरी आबादी का ज्यादा जोर आज के समय में खर्च पर है न कि बचत पर (भारतीयों के आम व्यवहार के विपरीत), इच्छित खरीद व विभिन्न आनलाइन शॉपिंग विकल्पों के लिए उनकी आसान पहुंच है अफोर्डबुल रिटेल क्रेडिट पर। हालांकि जब यह एक पैटर्न बन जाए तो मिलिनियल को भरोसेमंद वित्तीय प्रबंधन को एक टूल की तरह तलाशना चाहिए। युवाओं के…

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भारत, सबसे बड़ी युवा एवं उभरती हुयी अर्थव्यवस्था, होने का दावा करती है और प्रमुख रुप से जेन-Z व साथ ही साथ मिलिनियल आबादी के होने का और इस पूरी आबादी का ज्यादा जोर आज के समय में खर्च पर है न कि बचत पर (भारतीयों के आम व्यवहार के विपरीत), इच्छित खरीद व विभिन्न आनलाइन शॉपिंग विकल्पों के लिए उनकी आसान पहुंच है अफोर्डबुल रिटेल क्रेडिट पर। हालांकि जब यह एक पैटर्न बन जाए तो मिलिनियल को भरोसेमंद वित्तीय प्रबंधन को एक टूल की तरह तलाशना चाहिए।

युवाओं के लिए, जो कि भारत का भविष्य हैं, यहां पेश है पैसे बचाने व उनके भविष्य के निवेश के लिए एक गाइड:खर्च को ट्रैक करें मिलिनियल्स पैसे को एक सुलभ साधन के तौर पर देखते हैं और पसंद करते हैं इसका उपयोग करना जिसका परिणाम होता है पे-चेक टू पे-चेक एक्जिस्टेंस के रुप में,  इससे पहले कि वो इसे महसूस कर सकें। इसलिए खर्च के ट्रेंड को समझते हुए यह पहला तार्किक कदम होता है कि बुद्धिमत्तापूर्ण बचत के तरीके विकसित किए जाएं। 

आज के टेक सैवी युवा के लिए स्मार्ट टिप है कि वो एक्सपेंस ट्रैकर एप का उपयोग करें। समूह में होने वाले खर्च जैसे छुट्टियां मनाने, शापिंग और खान-पान को एप का इस्तेमाल कर अनाप-शनाप खर्चों में कमी लाएं और उनकी निगरानी पर काम करें। एप्स रिमाइंडर्स को शेड्यूल करते हैं बिलों के भुगतान में और बाहर खाने व छुट्टी मनाने के दौरान बिलों के भुगतान को स्पिलिट करने में मदद करते हैं। कैफे मीट, स्माल डिनर या अन्य खर्चों जैसे आसानी से चुकाए जा सकने मदों को ध्यान में रखते हुए, जिन्हें ब्याज मुक्त अवधि में चुकाया जा सकता है, क्रेडिट कार्ड के हद से ज्यादा उपयोग से बचें। यह स्वस्थ क्रेडिट स्कोर बरकरार रखने व क्रेडिट योग्य बनाए रखने में मदद करेगा।

नया आटोमोबाइल खरीदने, शादी के लिए बचत करने या घर की पुनर्सज्जा अथवा स्वास्थ्य क्षेत्र में आपात स्थिति जैसे उद्देश्यों के लिए एक उपयुक्त धनराशि अवश्य उपलब्ध रहनी चाहिए। इस तरह के उद्देश्य आपको बेहतर बचत के अभ्यास के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। एक आपात फंड की आवश्यकता हालांकि एसी चीज है जो बचत के मामले में अक्सर भुला दी जाती है।

बीमा पर निर्भरता

आजकल बीमा लेना एक जरुरत बन चुका है क्योकि यह जीवन में किसी भी दिक्कत और दुर्घटना की स्थिति में वित्तीय सुरक्षा देता है। युवाओं को मूलभूत बीमा पालिसियां जैसे कंपनी का सामूहिक स्वास्थ्य बीमा या वैयक्तिक स्वास्थ्य बीमा कवर, दुर्घटना बीमा, जीवन बीमा आदि को चुनते हुए अपनी वित्तीय दशा के लिए सुरक्षा चक्र रखने का हमेशा ध्यान रखना चाहिए।

जीवनशैली में कुछ सुधार करें

मिलिनियल और जेन-जेड दूसरी तरह की जीवनशैली व जीवन के ढर्रे की प्राथमिकताएं रखते हुए स्मार्टफोन्स, सोशल मीडिया और डिजिटल लाइफ के आदी होते हैं। यदि विवेकपूर्ण ढंग से प्रबंधन किया जाए तो डिजिटल लाइफ का नया तरीका अच्छी बचत व स्क्रीनटाइम के साथ संतुलन का परिणाम दे सकता है। उदाहऱण के लिए  यहां अनगिनत ओटीटी प्लेटफार्म्स हैं जिनमें एक-दो का वार्षिक सब्सक्रिप्शन लेकर मैनेज किया जा सकता है और बाकी को तीन महीने की अवधि के लिए।

इससे अच्छी बचत की जा सकती है। पैसों की बचत जीवन का एक महत्वपूर्ण कौशल है जिसे किसी भी उम्र में अपनाया जा सकता है और अगर कम उम्र से अपना लिया जाए तो यह सभी के लिए लाभदायक हो सकता है। वित्तीय अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है आपको अपने पैसे पर पूरा नियंत्रण रखने के लिए न कि इसकी विपरीत स्थिति के लिए।लेखक- आफरीन अली, एवीपी- मार्केटिंग कम्यूनिकेशन, होम क्रेडिट इंडिया में कार्यरत है।

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स्वावलम्बी भारत अभियान खोलेगा उत्तराखंड के हर जिले में जिला रोजगार सृजन केंद्र- डॉ दिव्या नेगी https://involvement.co.in/%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%b2%e0%a4%ae%e0%a5%8d%e0%a4%ac%e0%a5%80-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%85%e0%a4%ad%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%96/ Sun, 08 Jan 2023 06:30:12 +0000 https://involvement.co.in/?p=10588  बेरोजगारी किसी भी विकासशील देश की बहुत बड़ी समस्या होती है हम भी रोज इस परेशानी के बारे में खबरों में पढ़ते है और सुनते हैं, हम सभी जानते हैं इस समस्या के बारे में केवल बात करने से इसका हल नहीं निकलने वाला, यदि हम सच में इसका हल निकालना चाहते हैं तो इसके लिए हमें अपने देश  में एक अभियान चलाना होगा जब यह अभियान जन जन तक पहुंचेगा और सभी लोगों की इस में भागीदारी होगी तभी हम मिलजुल कर अपने युवाओं के लिए इस समस्या का…

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बेरोजगारी किसी भी विकासशील देश की बहुत बड़ी समस्या होती है हम भी रोज इस परेशानी के बारे में खबरों में पढ़ते है और सुनते हैं, हम सभी जानते हैं इस समस्या के बारे में केवल बात करने से इसका हल नहीं निकलने वाला, यदि हम सच में इसका हल निकालना चाहते हैं तो इसके लिए हमें अपने देश  में एक अभियान चलाना होगा जब यह अभियान जन जन तक पहुंचेगा और सभी लोगों की इस में भागीदारी होगी तभी हम मिलजुल कर अपने युवाओं के लिए इस समस्या का समाधान ढूंढ पाएंगे। बेरोजगारी के बारे में बात तो बहुत सारे संगठन करते हैं लेकिन इस समस्या के समाधान के लिए ठोस कदम उठाना हर किसी के बस की बात नहीं।  रोजगार सृजन इस समय भारत की सबसे बड़ी आवश्यकता है, तो प्रश्न यह है कि क्या 2030 तक भारत को पूर्ण रोजगार युक्त देश बनाया जा सकता है? क्या भारत की आर्थिक संपन्नता का मापदंड, 2030 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हो सकता है? जो अभी लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर है।
 
स्वदेशी जागरण मंच ने इस प्रकार के विषयों पर अपने प्रारंभिक काल से ही चिंतन मंथन किया है । वास्तव में तो 30 वर्षों के विभिन्न स्वदेशी अभियान, आंदोलन, जन जागरण के कार्यक्रम हो या रचनात्मक कार्यक्रम इन सब का अंतिम उद्देश्य राष्ट्र को आर्थिक स्वावलंबन के मार्ग पर आगे बढ़ाना ही है। राष्ट्र और स्वदेशी आंदोलन ठीक गति से बढ़ रहा था लेकिन तभी कोरोना महामारी ने विश्व और भारत में दस्तक दी उसके कारण अर्थव्यवस्था और रोजगार का बड़ा नुकसान हुआ। जहां जीडीपी में ऐतिहासिक गिरावट आई वही करोड़ों लोगों का रोजगार भी बुरी तरह प्रभावित हुआ इन परिस्थितियों में स्वदेशी जागरण मंच ने देश को इस संकट से उबारने के लिए अनेक स्तरों पर चर्चा की और अंततः सितंबर 2021 में स्वदेशी शोध संस्थान द्वारा ’अर्थ- चिंतन 2021’ गोष्ठी का आयोजन हुआ इस गोष्ठी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री मुकुंद जी, केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी, श्री भूपेंद्र यादव, नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ राजीव कुमार, नाबार्ड के चेयरमैन डॉ जी. आर. चिंताला, मणिपाल ग्लोबल फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ टी. वी. मोहनदास पाई, अमूल के सीएमडी श्री रूपेंद्र सिंह सोडी, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो नागेश्वर राव व प्रोफेसर आशिमा गोयल, सॉफ्टवेयर कंपनी जोहो के श्रीधर वैंबू, कनेरी मठ के स्वामी जी, पतंजलि आयुर्वेद के आचार्य बालकृष्ण, जागरण मंच के प्रोफेसर भगवती प्रकाश, सुंदरम जी, डॉ अश्विनी महाजन आदि ने सहभाग किया।
 
इस गोष्ठी में संपूर्ण चिंतन मनन अर्थ व रोजगार सृजन पर केंद्रित था। इसमें यह निर्णय हुआ कि भारत को पूर्ण रोजगार युक्त करने के लिए और अपने अन्य आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए एक व्यापक योजना व अभियान चलाना चाहिए। रोजगार सृजन के रूप में बहुत बड़ी चुनौती समाज के सामने है, सरकार तो अपना प्रयत्न करती ही है किंतु आर्थिक, सामाजिक व शैक्षिक संगठनों का भी स्वाभाविक कर्तव्य है कि अपनी छोटे-बड़े प्रयत्न प्रारंभ करें। इसलिए स्वावलम्बी भारत अभियान के अंतर्गत यह प्रयत्न प्रारंभ हुआ और यह तय हुआ कि हर जिले में एक जिला रोजगार सृजन केंद्र का निर्माण किया जाएगा। साथ ही समाज की विशेषकर युवाओं की मानसिकता परिवर्तन हेतु एक बड़ा जन जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा।
 
 
 
उत्तराखंड में स्वावलम्बी भारत अभियान के तहत 2 रोजगार सृजन केंद्र खुल चुके हैं जिसमें एक देहरादून में है और दूसरा हरिद्वार में। यह रोजगार सृजन केंद्र स्वावलम्बी भारत अभियान के तहत वन स्टॉप सॉल्यूशन के अंतर्गत बनाया गया है जहां पर कुछ लोग फुल टाईम अपनी सेवा उपलब्ध कराएंगे। इस प्रांत की टोली के मार्गदर्शन में सृजन केंद्र विभिन्न सेवाएं उपलब्ध कराएगा जिसमें मुख्य रूप से सरकार की योजनाओं का किस तरह से लाभ लिया जाए इस बारे में केंद्र में उपस्थित लोग आम जनों को विस्तारपूर्वक बताएंगे। इस केंद्र में उपस्थित टीम उद्योग के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी बनाएंगे एवं आवश्यकता अनुसार शोध करेंगे। अगर किसी को उद्यम के लिए पूंजी जुटानी है तो उसके लिए भी टीम जानकारी पता कर उन उद्यमियों को पूंजी जुटाने में मदद करेंगे एवं लोन की आवश्यकता होने पर उद्यमियों को पुर्ण जानकारी दी जाएगी। यह टीम उद्यमियों के लिए आवश्यकता अनुसार संसाधन जुटाने में भी मदद करेंगी एवं उत्पादित वस्तुओं का मार्केटिंग भी इन्हीं के जिमेदारियों में दिया गया है। उत्तराखंड में अंतर्गत जल्द ही हर जिले में जिला रोजगार सृजन केंद्र खोला जाएगा।
 
स्वावलम्बी भारत अभियान के तहत डिजिटल वॉलिंटियर्स को भी जोड़ा जा रहा है।  अगर कोई युवा स्वावलम्बी भारत अभियान के डिजिटल वॉलिंटियर्स टीम से जुड़ना चाहता है तो वे www.mysba.co.in पर रजिस्ट्रेशन कर पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते है। लेखक के बारे में डॉ दिव्या नेगी घई पेशे से एक शिक्षाविद, लेखिका और युवा सामाज कार्यकर्ता हैं। वे स्वावलम्बी भारत अभियान की प्रांत की महिला सह समन्वयक हैं। वे एक दशक से अधिक समय से स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पढ़ा रही हैं और अपने एनजीओ यूथ रॉक्स फाउंडेशन के माध्यम से युवाओं के लिए काम भी करती हैं।

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अन्य राज्यों में रह रहे उत्तराखंड के महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर की एक सस्ंथा का गठन हो https://involvement.co.in/%e0%a4%85%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%af-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%b0%e0%a4%b9-%e0%a4%b0%e0%a4%b9%e0%a5%87-%e0%a4%89%e0%a4%a4/ Sun, 13 Nov 2022 06:07:08 +0000 https://involvement.co.in/?p=9604 उत्तराखंड के लोगों के लिए है यह सौभाग्य की बात है कि हम इस साल अपने राज्य के 22वां स्थापना दिवस मना रहे हैं। इन 22 सालों में उत्तराखंड ने बहुत परिवर्तन देखा है। सामाजिक, आर्थिक  एवं राजनैतिक परिवर्तन  से ही सिर्फ उत्तराखंड का सामना नहीं हुआ है। हमारे इस राज्य में जो मूल रूप से परिवर्तन हुआ है और वह दिख रहा है उसमें असुरक्षित महिला, बेरोजगार युवक,  पहाड़ों से पलायन होते लोग, उत्तराखंड के विकास के नाम पर दोहन होते हुए हमारे जलसंपदा, वनसंपदा एवं भू-संपदा इन सभी…

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उत्तराखंड के लोगों के लिए है यह सौभाग्य की बात है कि हम इस साल अपने राज्य के 22वां स्थापना दिवस मना रहे हैं। इन 22 सालों में उत्तराखंड ने बहुत परिवर्तन देखा है। सामाजिक, आर्थिक  एवं राजनैतिक परिवर्तन  से ही सिर्फ उत्तराखंड का सामना नहीं हुआ है। हमारे इस राज्य में जो मूल रूप से परिवर्तन हुआ है और वह दिख रहा है उसमें असुरक्षित महिला, बेरोजगार युवक,  पहाड़ों से पलायन होते लोग, उत्तराखंड के विकास के नाम पर दोहन होते हुए हमारे जलसंपदा, वनसंपदा एवं भू-संपदा इन सभी क्षेत्रों में भी अप्रत्याशित परिवर्तन एवं  वृद्धि हुआ है।

आज मैं अपने इस लेख के माध्यम से सिर्फ एक मुद्दे की बात करना चाहती हूं। हाल ही में जो घटना हमारे उत्तराखंड के लोगों के साथ उत्तराखंड में घटित हुई है एवं जो लोग उत्तराखंड से बाहर रह रहे हैं उनके साथ भी यह घटना अब धीरे-धीरे आम होती चली जा रही है। जब अंकिता हत्याकांड की घटना हुई तो हमें यह लग रहा था कि हमारे राज्य में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। हमारी सरकार एवं बुद्धिजीवियों को महिला सुरक्षा के क्षेत्र में कदम उठाना चाहिए ऐसा विचार आ रहा था। परंतु हाल के दिनों में उत्तराखंड के महिलाओं के साथ दिल्ली में जो घटना घटित हुई, वह हमें अब शर्मसार कर रही है। क्या अब हम यह मान ले कि उत्तराखंड की महिलाएं ना अपने राज्य में सुरक्षित है और नाही अब अन्य राज्यों में उत्तराखंड की महिला सुरक्षित है।

अंकिता हत्याकांड के साथ-साथ किरण नेगी की हत्या अब हमें सोचने पर मजबूर कर रही है। किरण नेगी की हत्या जिस बर्बरता के साथ दिल्ली में अपराधियों ने की है वह पूरे मानव जाति के लिए एक कलंक है। साथ ही वह कलंक हमारे राज्य के लोगों के माथे पर भी है। उत्तराखंड के सिर्फ महिलाएं ही असुरक्षित है ऐसा नहीं है ,  हाल ही के एक घटना में मनोज नेगी की भी हत्या कर दी गई थी। मनोज नेगी का कसूर बस इतना था कि दिल्ली के बलजीत नगर के पटेल नगर में कुछ बदमाशों ने उसकी बहन के साथ छेड़छाड़ की और मनोज नेगी ने अपनी बहन की अस्मत की रक्षा करते हुए उन बदमाशों का विरोध किया। बदमाशों ने मौके पर ही मनोज नेगी को चाकू से  हमला कर लहूलुहान कर दिया और मनोज नेगी की मृत्यु हो गई। इस तरह की घटनाएं अब उत्तराखंड के लोगों के साथ अनगिनत हो रही है।

हमारे राज्य में बेरोजगारी की अत्यधिक संख्या होने के कारण बहुत से परिवार अन्य राज्यों में रोजगार के लिए जा रहे हैं। बेशक उन्हें वहां रोजगार मिल रहा है परंतु उन्हें अनगिनत समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है। वही हमारा राज्य उत्तराखंड पहाड़ से पलायन का दंश भी झेल रहा है, गांव के गांव हर रोज खाली होते जा रहे हैं। जहां पलायन होते हुए लोगों एवं महिलाओं के साथ इस तरह के अपराधिक घटनाएं भी बढ़ रही है।  मैं सोचती हूं कि क्या इस घटना को रोका जा सकता है या फिर  इसकी गति को कम किया जा सकता है क्या? 

मैं उत्तराखंड के राजनीतिक दलों एवं सरकारों के साथ-साथ सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं बुद्धिजीवियों से अनुरोध करना चाहती हूं कि हम सब एक ऐसे कमेटी या संस्था का गठन करें जिसके माध्यम से उत्तराखंड से पलायन होते हुए लोगों का ब्यौरा हमें स्पष्ट रूप से मिल सके। साथ ही साथ क्या हम अन्य राज्यों में रह रहे लोगों के साथ जो अत्याचार एवं हिंसक घटना घट रही है उसके लिए कोई एक ऐसा मंच तैयार करें जहां पर इन सभी लोगों दूसरे राज्यों में सुरक्षा मुहैया कराई जा सके। गढ़वाल, कुमाऊं एवं जौनसार के साथ-साथ अन्य सभी लोगों के साथ जो घटना अन्य राज्यों में हो रही है उसका लेखा-जोखा हमारे पास हो एवं ऐसी घटना दोबारा ना हो सके उसके लिए कोई एक राष्ट्रीय स्तर की कमेटी भी बनाई जा सके जिसमें उत्तराखंड के सरकारों का हस्तक्षेप हो एवं उत्तराखंड के लोगों के लिए सुरक्षा मुहैया कराई जा सके। अगर कोई अपराधिक घटना किसी महिला एवं अन्य लोगों के  साथ हुआ हो तो उस पर त्वरित कार्रवाई की जा सके। लेखक के बारे में…डॉ दिव्या नेगी घई पेशे से एक शिक्षाविद, लेखिका और युवा सामाज कार्यकर्ता हैं। वे एक दशक से अधिक समय से स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पढ़ा रही हैं और अपने एनजीओ यूथ रॉक्स फाउंडेशन के माध्यम से युवाओं के लिए काम भी करती हैं।

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